भारत-फ्रांस- मददगार रिश्ता
 इलमा अजीम
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की भारत यात्रा कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। वे गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि तो हैं ही, उनके आने से दोनों देशों के बीच के रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे। पिछले वर्ष दोनों देशों ने परस्पर सहयोग के पच्चीस वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया। हालांकि फ्रांस के साथ भारत के संबंध हमेशा से बेहतर रहे हैं, मगर इस समय जब दुनिया के राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं, इन दोनों के रिश्तों की मजबूती कई चुनौतियों से पार पाने में मददगार साबित होगी। जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, व्यापार, छात्रों और पेशेवरों के वीजा मामले में सहयोग बढ़ाने आदि विषयों पर बातचीत हुई। गणतंत्र दिवस परेड में फ्रांस की टुकड़ी भी हिस्सा ले रही है। भारत के लिए फ्रांस का महत्त्व इस बात से समझा जा सकता है कि वह भारत का दूसरा बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता देश है। रफाल लड़ाकू विमान और स्कार्पियन पनडुब्बी की आपूर्ति के अलावा वह भारत के एक बड़े रणनीतिक साझीदार के रूप में उभरा है। खासकर हिंद महासागर में दोनों देशों के बीच संयुक्त सामरिक समझौते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी फ्रांस हमेशा भारत का समर्थन करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में उसके प्रवेश का वह समर्थक रहा है। पोकरण परमाणु परीक्षण के बाद जब भारत अलग-थलग पड़ गया था, तब फ्रांस ने ही उसका साथ दिया। पिछले पच्चीस वर्षों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देशों की श्रेणी में फ्रांस तेजी से आगे बढ़ता देखा गया है। उसने कई महत्त्वपूर्ण उपक्रम यहां लगाए हैं।  यह अलग बात है कि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन नहीं है, फ्रांस की तुलना में भारत काफी कम उसे निर्यात कर पाता है। मगर विज्ञान और तकनीक, जलवायु परिवर्तन आदि से जुड़े मसलों पर भारत को फ्रांस से काफी ताकत मिली है। फ्रांस पहला देश है, जिसके साथ मिल कर भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की थी। दोनों देशों का जोर नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने पर है, इस क्षेत्र में दोनों के लिए असीमित संभावनाएं हैं।

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