उत्तरदायित्वों को निर्वहन की लें शपथ
- संजीव ठाकुर
गणतंत्र दिवस देश के लिए गौरव साली दिवस है। इस अवसर पर हमें नवीन संकल्पों के साथ नए-नए विकास और उत्थान के संकल्पों निर्वाहन की शपथ भी लेनी होगी। तब जाकर गणतंत्र दिवस मनाने की सार्थकता प्रमाणित हो पाएगी। आज ही के दिन स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग ढाई वर्ष बाद इसी ऐतिहासिक तिथि 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया था। और भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने प्रथम राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी।
तत्कालीन वायसराय राजगोपालाचारी जी ने विधिवत रूप से अपने समस्त अधिकार हस्तगत किए थे। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महत्वपूर्ण सहयोगियों के द्वारा निर्मित भारत के संविधान को जारी करते हुए ही भारत प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य बन गया था। गणतंत्र का अर्थ ऐसी शासन व्यवस्था से है जिसमें सत्ता जनसाधारण में समाहित है। वैसे तो हमें 15 अगस्त 1945 को ही अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली थी, किंतु इस स्वतंत्रता को वास्तविक अर्थ देते हुए प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य राष्ट्र घोषित 26 जनवरी 1950 को ही किया गया था। निसंदेह हैं यह हमारे लिए गौरवशाली दिवस है, एवं राष्ट्रीय पर्व भी है। इस दिन प्रत्येक भारतीय को देश की आजादी में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का दिवस है। इस दिन हम सब को समझना होगा की आजादी खून बहा कर प्राप्त हुई है आसानी से नहीं मिली है। आजादी प्राप्त करने के लिए हजारों लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। प्राणों को न्यौछावर करने के बाद ही हमें प्रभुसत्ता संपन्न गणराज्य के रूप में में स्थापना मिली है। क्या भारतवासी हम सब आजादी के इस मूल्य और गणतंत्र या लोकतंत्र की भावना को अच्छे से समझते हैं, और इस राष्ट्र के विकास तथा देश का वैश्विक स्तर पर सिर ऊंचा करने का प्रयास कर रहे हैं, यह एक वैचारिक प्रश्न है।
क्या हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था की बारीकियों को समझते हैं या जिस आजादी की फिजा में हम सांस ले रहे हैं उसके महत्व को कितना समझ रहे हैं, एवं उसके प्रति कितनी श्रद्धा है। आजादी वीर जवानों के संघर्षों की ही देन है।
हमारा गणराज्य या भारतीय लोकतंत्र हमेशा सलामत रहे। हमारे देश की सेना के वीर जवान सीमा पर सर्दी गर्मी लूट एवं अनेक विपरीत परिस्थितियों को सहते हुए भी हर पल दुश्मनों पर केवल इसलिए नजर रखते हैं कि हमारा गणतंत्र एवं हमारा लोकतांत्रिक गणराज्य सुरक्षित रह सके। हमें भी अपनी स्वतंत्रता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए संकल्प लेते हुए देश के विकास में हरसंभव योगदान देना चाहिए। महान संत रामतीर्थ ने कहा था कि "राष्ट्र के हित की रक्षा के लिए प्रयत्न करना विश्व की शक्तियों का यानी देवताओं की आराधना करना ही है"।
राष्ट्रीय एकता का यह पर्व हम सबको एवं सभी धर्मों को मिलजुल कर रहने एवं प्रेम भाईचारे का संदेश देता है। हमें हर संभव देश के स्वतंत्रता ,अखंडता और संप्रभुता बनाए रखने की शपथ लेनी चाहिए। हमें इस गणतंत्र दिवस पर नए संकल्प यानी नारी शक्ति की आराधना, बालिकाओं के समग्र विकास की परिकल्पना देश की हर संभव विकास की संभावनाओं को अग्रसर करना एवं सांप्रदायिक सौहार्द शांति अमन बनाए रखने में हर संभव एकजुट रहना होगा। यह सर्वविदित है की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत ने विकास की नई शाखाएं विज्ञान, टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, स्पेस रिसर्च एवं सामरिक महत्व के कई अविष्कारों पर अपनी प्रगति की छाप छोड़ी है। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश में चहुमुखी विकास किया है। एवं विदेशों में भी भारतीय लोगों ने अपना परचम फैलाया है। वर्तमान समय में कोविड-19 के संक्रमण में भारत वासियों ने जिस एकजुटता एवं अपनी जिजीविषा का परिचय देकर इसे प्राप्त किया है वह निसंदेह काबिले तारीफ है।
 भारत सरकार ने न सिर्फ अपने देश के नागरिकों की रक्षा की है बल्कि विदेशों में गरीब लोगों के लिए दवाइयां एवं इंजेक्शन भी निर्यात किए हैं। गणतंत्र दिवस में हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम धार्मिक आडंबर, अंधविश्वास एवं शिक्षा को देश से समूल नष्ट कर बाहर फेंकने का काम करेंगे। स्त्रियों बालिकाओं को उचित सम्मान देकर उनकी शिक्षा उनके सम्मान एवं उनकी सहभागिता को उचित महत्व देकर आगे बढ़ाएंगे। गणतंत्र दिवस को नई कल्पना नई ऊंचाइयों को छूने के संकल्प के साथ मनाना होगा।


26 जनवरी को गणतंत्र दिवस को एक औपचारिक समारोह के रूप में ना मनाकर नई प्रतिज्ञा, नई शपथ और विकास की ऊंचाइयों को छूने का दृढ़ संकल्प लेना होगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जिन महान संत संग्राम सेनानियों ने और नागरिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है उनको नमन एवं श्रद्धांजलि देते हुए हम नए संकल्प के साथ कि भारत को नई ऊंचाइयों में पहुंचा कर विश्व गुरु बनाने की प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे। शुभकामनाओं तथा बधाइयों के साथ।
‍(स्तंभकार रायपुर, छत्तीसगढ़)

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