इंसान की इंसानियत और हैवानियत साहित्य में भी है और सोशल मीडिया में भी : आरिफ नकवी, जर्मनी

  सोशल मीडिया को जिंदगी से अलग नहीं किया जा सकता : असलम परवेज

  सोशल मीडिया के कई लर्निंग प्लेटफॉर्म हैं जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। : प्रो. जमाल अहमद सिद्दीकी, सीसीएसयू

मेरठ।  विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग और अंतरराष्ट्रीय युवा उर्दू लेखक संगठन(आयुसा ) के संयुक्त तत्वावधान में होने वाले साप्ताहिक ऑनलाइन कार्यक्रम अदबनुमा  का 100वें सत्र के अंतर्गत  "सोशल मीडिया के लाभ एवं हानि" विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ शाहिद अहमद सहारनपुरी की तिलावत और एम ए द्वितीय वर्ष की छात्रा फरहत अख्तर द्वारा पेश की गई नात से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध लेखक श्री आरिफ नकवी जर्मनी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि


मनुष्य की मानवता और पशुता साहित्य में भी पाई जाती है और सोशल मीडिया में भी। हम दूसरों को तो कहते हैं कि हमें सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन खुद इस बारे में नहीं सोचते. लेकिन आज का मीडिया हमें बहुत फायदा पहुंचा रहा है, लेकिन इसका एक नुकसान भी है कि हम सरलीकृत हो गए हैं। प्रो. जमाल अहमद सिद्दीकी (अध्यक्ष, पुस्तकालय विज्ञान विभाग सीसीएसयू), प्रो. आबिद हुसैन हैदरी (अध्यक्ष, उर्दू विभाग, एमजीएम कॉलेज, संभल), प्रो. प्रशांत कुमार (अध्यक्ष, मास कम्युनिकेशन, सीसीएसयू), डॉ. विद्या सागर (हिंदी विभाग) ने वक्ता के रूप में सहभागिता की। अभिव्यक्ति के लिए डॉ. रियाज अनवर (एमजीएम कॉलेज, संभल) और लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रो. रेशमा परवीन ने ऑनलाइन भाग लिया। स्वागत भाषण शोधार्थी  उज़मा सहर, संचालन डॉ. इरशाद स्यानवी और आभार सैयदा मरियम इलाही ने प्रस्तुत किया ।

विषय प्रवेश कराते हुए डॉ. इरशाद स्यानवी ने कहा कि सोशल मीडिया ने दूर के लोगों, रिश्तेदारों, प्रियजनों से संवाद का मंच उपलब्ध कराया है। इसके जरिए आप दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आज की युवा पीढ़ी के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी इसने अहम भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल गलत नहीं है, लेकिन इसके इस्तेमाल में सावधानी जरूरी है। यह भी सच है कि आज सोशल मीडिया के जरिए कई समस्याओं का समाधान हो रहा है।

उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज अदब-नुमा का 100वां कार्यक्रम है. यह हमारे लिए खुशी की घड़ी है. हमारे सभी दोस्तों और सदस्यों को बधाई! हमने अदब-नुमा के तहत कार्यक्रमों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है. न केवल बीए, एमए एवं शोधार्थी विद्यार्थियों की समस्याओं एवं विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों को विशेषज्ञों द्वारा उन तक पहुंचाया जाता है। बल्कि हमने सामाजिक विषयों से संबंधित कई कार्यक्रम भी आयोजित किये हैं। इसी प्रकार हमने सामाजिक, साहित्यिक एवं महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों पर भी कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं। भविष्य में भी हमारा प्रयास रहेगा कि साहित्यिक कार्यक्रमों का लाभ विद्यार्थियों के अलावा समाज के अन्य लोगों को भी मिले। आज भी हम एक महत्वपूर्ण विषय लेकर आये हैं सोशल मीडिया, इसमें कोई शक नहीं कि आज का युग सोशल मीडिया का युग है। इससे जहां कई फायदे हो रहे हैं वहीं इससे नुकसान भी हो रहा है और इसकी वजह से कई रिश्ते भी टूट रहे हैं। आज बहुत से लोग घर में एक ही जगह रहते हुए भी अकेलापन महसूस करते हैं। पत्नी अलग मोबाइल पर, पति अलग और बाकी लोग अलग मोबाइल पर हैं. इसलिए हमें खुद को और अपनी पीढ़ी को सोशल मीडिया के दुरुपयोग से रोकना होगा।

डॉ. रियाज अनवर ने कहा कि आज हमकरीब होकर भी सोशल मीडिया ने हमें दूर कर दिया है। आज समाज में अनेक समस्याएं हैं और सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर नई पीढ़ी को गुमराह किया जा रहा है। सोशल मीडिया का प्रयोग सकारात्मक रूप से करना चाहिए।

डॉ. रियाज़ तौहीदी ने कहा कि साहित्यिक कार्यक्रमों में शामिल होने वाले सभी प्रोफेसर, डॉक्टर और साहित्य प्रेमियों ने उर्दू का प्रचार-प्रसार बढ़ाया है। सोशल मीडिया ने लोगों को जोड़ने का अद्भुत काम किया है। इसने वैज्ञानिक शिक्षा और सामाजिक पहलुओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया के माध्यम से हमें दुनिया भर की जानकारी मिलती है।

डॉ. विद्यासागर ने कहा कि आज के समाज में जिस तरह से एक-दूसरे का अपमान हो रहा है, हर तरफ झूठ फैल रहा है तो यही सब सोशल मीडिया का धर्म है. आजादी के बाद से हम एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जो एक-दूसरे से जुड़ा हो, एकजुट हो और सौहार्द्रपूर्ण हो, लेकिन सोशल मीडिया ने इसे नष्ट कर दिया है। हमें सोशल मीडिया पर गंभीरता से विचार करना होगा।

प्रो. आबिद हुसैन हैदरी ने कहा कि इकबाल ने बहुत पहले ही हमें संकेत दे दिया था कि सोशल मीडिया का युग बहुत जटिल युग है. आज हमारा ज्यादातर काम सोशल मीडिया के माध्यम से छात्रों तक पहुंच रहा है। मोबाइल, लैपटॉप के साथ हमारे हाथ में इतनी बड़ी दुनिया है, यह सब सोशल मीडिया की ही देन है।

प्रो. प्रशांत कुमार ने कहा कि सोशल मीडिया को लेकर भारत की परंपरा पर नजर डालें तो पता चलता है कि आज के सोशल मीडिया ने इंसान को बदल दिया है. सोशल मीडिया ने पिछले दस सालों में बहुत बड़े काम किये हैं, आज जब हम देखते हैं कि समाज की परिस्थितियाँ रोज बदल रही हैं, तो इन परिस्थितियों को बनाने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। सोशल मीडिया ने मानव जीवन को काफी प्रभावित किया है।

प्रो. जमाल अहमद सिद्दीकी ने कहा कि एक सर्वे के मुताबिक 5 अरब से ज्यादा सोशल मीडिया यूजर्स बन गए हैं. सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या बहुत ज्यादा है और इनमें से 45% महिलाएं भी हैं। सोशल मीडिया पर हम जो कुछ भी पढ़ते हैं या जानकारी लेते हैं, उसमें बहुत सारी जानकारियां होती हैं, लेकिन सोशल मीडिया यूजर्स के पास सीखने के प्लेटफॉर्म भी हैं। जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.

 मुंबई से आए असलम परवेज ने कहा कि सोशल मीडिया को जिंदगी से अलग नहीं किया जा सकता। हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि हम सोशल मीडिया से अधिकतम लाभ कैसे उठा सकते हैं और नुकसान को कम करने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

प्रो. रेशमा परवीन ने कहा कि कोरोना के समय में छात्रों को सोशल मीडिया से नहीं जुड़ना पड़ा और यह उस समय बहुत जरूरी था. हमें यह सोचना चाहिए कि हम सोशल मीडिया का कितना उपयोग करते हैं और इसका अधिकतम लाभ कैसे उठा सकते हैं।

प्रो.मोहम्मद काज़िम ने कहा कि आज सभी मीडिया स्रोतों को अपना रहे हैं लेकिन किताबों से भी दूर जा रहे हैं। जब तक हम किताबें नहीं पढ़ेंगे, हम वास्तविक जानकारी से दूर रहेंगे। हमें कक्षा से जो ऊर्जा मिलती है वह सोशल मीडिया से नहीं मिलती।

कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद, फैजान जफर, लाइबा एवं अन्य छात्र ऑनलाइन जुड़े रहे।

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