‘डीपफेक’ के खतरे
इलमा अजीम
हम, मनुष्य, कितने असहाय और असुरक्षित हैं। कृत्रिम बौद्धिकता किस तरह हमें छल सकती है और अपना शिकार बना सकती है। इस प्रौद्योगिकी पर विश्व इतरा रहा है और सार्वजनिक इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। मनुष्य अहंकार में है कि उसने एक और मानव-जाति की रचना कर ली है। वह नहीं जानता कि यह मानवता के लिए कितना खौफनाक खतरा है, संकट है! ‘डीपफेक’ बनाना मुश्किल नहीं है। उसके रचयिता चेहरे और आवाज की नकल करने में सक्षम हैं। यह किसी की भी गरिमा, पहचान और स्वायत्तता का ही संकट नहीं है, बल्कि इस धोखाधड़ी से राष्ट्रीय विद्रोह पनप सकता है। दो देशों के संबंधों में तनाव फैल सकता है। सांप्रदायिक दंगे फैल सकते हैं। अफवाहें एक सच बनकर समाज और देश में व्याप्त हो सकती हैं और उनके फलितार्थ कितने भी भयानक हो सकते हैं। धोखा और दुष्प्रचार एक लोकतंत्र को पलट भी सकते हैं। वित्तीय फ्रॉड किए जा सकते हैं। कुल मिलाकर राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवता के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकते हैं। दरअसल हमें आसान और बनी-बनाई जिंदगी की आदत पड़ गई है। आखिर कृत्रिम बौद्धिकता की जरूरत ही क्या है? जब यह नहीं थी, तो क्या नए आविष्कार नहीं किए गए? क्या मनुष्य अंतरिक्ष में नहीं गया? क्या नए और सशक्त साहित्य की रचना नहीं की गई? हम स्वावलंबी थे, तो क्या हमारी हड्डियां, बाहें-टांगें टूट गई थीं? आज इतने पराश्रित क्यों हो रहे हैं हम? क्योंकि हम आलसी होते जा रहे हैं। उसी का गलत फायदा ‘डीपफेक’ जैसी प्रौद्योगिकी उठा रही है। जिसकी रचना ही ‘कृत्रिम’ है, वह एक जीते-जागते मनुष्य का विकल्प कैसे हो सकती है? ‘डीपफेक’ ने यहां तक साजिश रची थी कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को ‘नकली’ बनाया और सेनाओं को आदेश दिया कि वे रूसी सेनाओं के सामने आत्म-समर्पण कर दें। इस आदेश से यूक्रेनी सेना में अपने ही राष्ट्रपति के प्रति असंतोष भडक़ उठा। वक्त रहते असलियत समझ में आई और हालात पर काबू पा लिया गया। अलबत्ता ‘डीपफेक’ ने तो अराजकता और विद्रोह के बीज बो ही दिए थे। ब्रिटेन की एक ऊर्जा कंपनी के मुखिया नकद पैसा भेजने की धोखाधड़ी के शिकार हो गए, क्योंकि कंपनी के जर्मन सीईओ ने फोन किया था। दरअसल वह फोन कॉल ही ‘डीपफेक’ थी और आवाज नकली बना कर फोन किया गया था। बहरहाल अब भारत में भी नकलीपन की यह बीमारी जड़ें फैला चुकी है, लेकिन हमारे देश में कड़ी सजा की कोई कानूनी धारा नहीं है। अलबत्ता सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने निर्देश दिए हैं कि सोशल मीडिया और इंटरनेट कंपनियां, जिनमें आईटी मध्यस्थ कंपनियां भी शामिल हैं, रूल 3(2)(बी) के तहत किसी भी फर्जी वीडियो और पोस्ट को शिकायत के 24 घंटे के भीतर ही हटाएं अथवा उस तक किसी की पहुंच संभव न हो सके। मंत्रालय ने यह भी घोषणा की है कि ‘डीपफेक’ के दोषियों को 3 साल की अधिकतम जेल और एक लाख रुपए का आर्थिक दंड भुगतना पड़ेगा। यह अधिकतम सजा है, जिसे न्यायाधीश कम करके भी सुना सकते हैं। सवाल यह है कि एक बार किसी का ‘डीपफेक’ वीडियो सार्वजनिक हो गया, तो वह अल्पकाल में ही करोड़ों लोगों तक पहुंच सकता है। उसकी निजता, गरिमा, पहचान को नुकसान हो जाएगा।
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