जलवायु परिवर्तन के खतरे
 इलमा अजीम 
हम नवम्बर में दीपावली पर्व मना लिए, लेकिन हमारे गरम कपड़े अभी गायब हैं। देश के करीब 99 फीसदी हिस्से अधिक तापमान को झेल रहे हैं। राजधानी दिल्ली और आसपास के शहरों का अधिकतम तापमान अब भी 32-34 डिग्री सेल्सियस है। रात के न्यूनतम तापमान में कुछ ठंडक आई है, लेकिन पंखे अब भी चल रहे हैं। औसत तापमान सामान्य से अधिक है, लिहाजा सर्दी का एहसास भी गायब है। मौसम विज्ञानियों का आकलन है कि इस बार 15 दिसंबर तक वैसी सर्दी महसूस नहीं होगी, जिसके लिए दिल्ली और आसपास के क्षेत्र विख्यात हैं। 



बीती कई सदियों की सर्दी का आकलन किया गया है, तो 2023 को सबसे गरम वर्ष आंका जा रहा है। मौसम के इस बदलते रुख के मानवीय स्वास्थ्य, कृषिगत और अर्थव्यवस्था संबंधी नकारात्मक असर भी सामने आ रहे हैं, क्योंकि अनुकूलन का माहौल नहीं है और गरम कपड़ों का बाजार उदास, मूकदर्शक बना है। मौसम विज्ञानी मान रहे हैं कि संभव है कि आगामी मई-जून में जबरदस्त गर्मी के स्थान पर बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के मौसम देखने और झेलने पड़ें! एक तरफ देश के करीब 91 फीसदी शहरों, कस्बों में प्रदूषण की जहरीली हवाएं चल रही हैं, वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार गंभीर श्रेणी में दर्ज किए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ प्रकृति बेहद नाराज है और सर्दियों में ठंडक ही गायब है। 
       

तमिलनाडु में भारी बारिश का प्रकोप है। राजधानी के कुछ हिस्सों में शुक्रवार की सुबह कुछ बूंदाबांदी हुई है। यही तो जलवायु परिवर्तन के भयानक और नकारात्मक असर हैं-बेमौसमी सब कुछ। दुर्भाग्य और विडंबना है कि हम अब भी पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ता ही जा रहा है। यह कार्बन उत्सर्जन, विषैली गैसों और धुएं का ही असर है कि जिन यूरोपीय देशों में, घर-दफ्तरों में, पंखे ही नहीं होते थे और अधिकतर मौसम सर्द ही रहता था, वहां आजकल तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक है। वहां के लोग तालाबों, झरनों में नहा रहे हैं और घर-दफ्तरों में पंखे भी चलने शुरू हो गए हैं। इटली के वेनिस शहर की झीलों पर सूखने के संकट मंडरा रहे हैं। दुनिया भर से लोग इस खूबसूरत शहर में आते रहे हैं और झीलों में नौका-विहार का आनंद उठाते रहे हैं, लेकिन लगातार गर्मी इतनी बढ़ती जा रही है कि झीलों का पारदर्शी पानी भाप बनने लगा है। ये प्रत्यक्ष तौर पर जलवायु परिवर्तन के ही प्रभाव हैं।


 भारत में 90 फीसदी से अधिक कामगार और मजदूर खुले में ही काम करने को बाध्य हैं। यदि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां लगातार लंबी होती रहीं, तो इस तरह काम करना असंभव-सा होता जाएगा। जाहिर है कि कामगारों की औसत उत्पादकता और कार्य-शक्ति कम होती जाएगी। अंतत: नुकसान देश का ही होगा। सर्वोच्च अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकारों को फटकार लगाते रहे हैं। चेतावनियां भी जारी करते हैं, लेकिन हमारा राजनीतिक नेतृत्व बिल्कुल संवेदनहीन है। उसे भविष्य के खतरों से डर नहीं लगता। वह अपनी ही सत्ता और सियासत के नशे में चूर है। दुर्भाग्य यह भी है कि ये मुद्दे जन-सरोकार के आधार नहीं बनते। प्रदूषण और बदलते मौसम के भयावह खतरों पर आंदोलन तैयार नहीं किए जा सकते और न ही कोई चुनाव निश्चित किया जा सकता है। वैसे प्रकृति की करवटों को हम प्रत्यक्ष तौर पर झेल ही रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या वैश्विक स्तर पर है। यह माना जाता है कि इसके लिए ज्यादा दोषी विकसित देश हैं, जो अपनी जिम्मेवारी समझने के लिए तैयार नहीं हैं।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts