भारत का बढ़ता कद
इलमा अजीम 
तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में भारत का ऊंचा होता कद जी-20 सम्मेलन में दिखने लगा है। एक तरफ, भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभर रहा है तो दूसरी तरफ, दक्षिण अफ्रीकी देशों की अगुवाई भी करता प्रतीत हो रहा है। दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के समूह ‘जी-20’ की पहली बार भारत की अध्यक्षता में होने जा रहे सम्मेलन (9-10 सितंबर) के लिए नई दिल्ली सज-धजकर तैयार है। 
सुरक्षा के अपूर्व उपाय किए जा चुके हैं और अब बस विश्व के शीर्ष नेताओं के आगमन का इंतजार किया जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन तो एक दिन पहले ही नई दिल्ली पहुंचेंगे, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी अलग से बातचीत तय है। इस सम्मेलन की मेजबानी करके हम तो अपने आप को सम्मानित महसूस कर ही रहे हैं, अमेरिका और अन्य विकसित देश भी उभरते भारत के साथ ‘ड्राइविंग सीट’ साझा करने में अपनी भलाई देख रहे हैं। इसलिए जी-20 के इस बहुप्रतीक्षित सम्मेलन की सफलता पर काफी कुछ दांव पर लगा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से सम्मेलन की सफलता पर कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। पुतिन की अनुपस्थिति ने एक तरह से भारत को धर्मसंकट से बचा लिया है। नाटो देश यूक्रेन युद्ध के कारण पुतिन को युद्ध अपराधी मान चुके हैं। ऐसे में उनके साथ संतुलित व्यवहार करने में भारत को ही नहीं, समूह के अन्य देशों को भी दिक्कत हो सकती थी। तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में भारत का ऊंचा होता कद जी-20 सम्मेलन में दिखने लगा है। एक तरफ, भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभर रहा है तो दूसरी तरफ, दक्षिण अफ्रीकी देशों की अगुवाई भी करता प्रतीत हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर दक्षिणी अफ्रीकी यूनियन को जी-20 में शामिल करने पर लगभग सहमति बन गई है। इस पर औपचारिक मुहर लगते ही नई दिल्ली का यह शिखर सम्मेलन कई देशों के लिए मील का पत्थर बन जाएगा। भविष्य में भी यह भारत की बदलती विदेश नीति की बड़ी सफलता मानी जाएगी। केंद्र सरकार भी भारत की इस उपलब्धि को प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी उपलब्धि के रूप से प्रचारित करने लगी है। जी-20 की बैठक में जिस तरह आमंत्रण-पत्रों, पहचान-पत्रों और आयोजन के अन्य दस्तावेजों में ‘इंडिया’ की बजाय ‘भारत’ को आगे किया गया है उसके जरिए भी संदेश देने का प्रयास किया गया है। सम्मेलन से ठीक पहले भारत बनाम इंडिया मुद्दे को तूल देकर दुनिया को यह बताने की कोशिश की गई है कि हमारी विरासत विदेशी आक्रांताओं के आने से काफी पहले की और समृद्ध है। 

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