रैगिंग में बुझते दीपक
इलमा अजीम
रैगिंग की शुरुआत कुछ यूरोपीय विश्वविद्यालयों में हुई थी जहां नए छात्रों के स्वागत के समय सीनियर विद्यार्थी व्यावहारिक मजाक करते थे। धीरे-धीरे यह दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गया। आज लगभग सभी देशों ने सख्त कानून बनाकर रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है और कई देशों में इसे खत्म भी कर दिया गया है। बहुत ही दु:ख की बात है कि हमारे शिक्षण संस्थान अभी भी इस अमानवीय प्रथा से मुक्त नहीं हुए हैं। पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में कथित तौर पर रैगिंग के कारण एक छात्र की मौत ने कई लोगों को झकझोर कर रख दिया है। गत दिनों हिमाचल के मंडी में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के साथ रैगिंग की घटना सामने आई। संस्थान प्रबंधन ने मामले की जांच के बाद दस सीनियर छात्रों को निलंबित कर दिया है। आईआईटी मंडी के बाद अब हिमाचल के ही श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज नेरचौक में परिचय के बहाने जूनियर्स से रैगिंग की गई। रैगिंग को किसी भी अव्यवस्थित आचरण जैसे साथी छात्र-छात्राओं को चिढ़ाना, उनके साथ अशिष्ट व्यवहार करना, अनुशासनहीन गतिविधियों में शामिल होना, जिससे मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है या जूनियर छात्रों के बीच डर का माहौल पैदा होता है। अक्सर जूनियर विद्यार्थियों की तुलना में सीनियर विद्यार्थियों द्वारा शक्ति और श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना रैगिंग के उद्देश्यों में शामिल होता है। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों में रैगिंग को रोकने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रॉक्टोरल समितियां स्थापित करने के लिए कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग मुद्दे पर नियम बनाने के लिए सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन के नेतृत्व में एक समिति नियुक्त की थी। इस राघवन समिति की सिफारिशों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अपनाया गया और इस संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किए गए जिनका पालन करना विश्वविद्यालयों के लिए जरूरी था। विश्वविद्यालयों को रैगिंग रोकने के लिए इन दिशा-निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया गया है। रैगिंग रोकने संबंधी दिशा-निर्देशों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए विशेषज्ञों, संस्था में पढऩे वाले विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों को शामिल करते हुए ऑडिट करवाने की जरूरत है। इस तरह के ऑडिट से इस दिशा में कमियों को दुरुस्त करने और रणनीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है। रैगिंग हिंसा का एक रूप है जो विद्यार्थियों को अपमानित, डराने-धमकाने या चोट पहुंचाने का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप अवसाद और कभी-कभी आत्महत्या जैसे प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं। इसलिए परिसरों में और उसके आसपास छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त उपाय किए जाने चाहिए। जूनियर और सीनियर दोनों को शामिल करते हुए सांस्कृतिक उत्सवों और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों का आयोजन ऐसी परिस्थितियों को कम कर सकता है।
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