शोध में नए विषय खोजने की जरूरत: आरिफ नकवी

  जो बातें समझकर पढ़ी जाती हैं वे लंबे समय तक दिमाग में ताजा और सुरक्षित रहती हैं: प्रोफेसर सगीर इफ्राहीम

मेरठ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में "अनुसंधान समस्याएँ एवं संभावनाएँ" विषय पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

मेरठ ।आजकल शोध का एक नुकसान यह भी है कि पुराने विषयों पर शोध कार्य किया जा रहा है, इन पुराने विषयों में थोड़ा सा बदलाव करके शोध करना अच्छा विचार नहीं है। शोध में नए विषय खोजने की जरूरत है। गालिब और इकबाल पर भी शोध होना चाहिए। यह नहीं समझना चाहिए कि उन पर बहुत शोध हो चुका है, बल्कि उन पर नए पहलू सामने आ सकते हैं।ये शब्द थे सुप्रसिद्ध जर्मन लेखक और शायर आरिफ नकवी के, जो उर्दू, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल यंग उर्दू स्कॉलर्स एसोसिएशन (आईयूएसए) द्वारा आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम 'अदबनुमा' में अपने अध्यक्षीय भाषण में "शोध की समस्याएं और संभावनाएं" विषय पर ऑनलाइन कह रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि हमें शोध करते समय विकास के बारे में सोचना चाहिए। उर्दू का इंटरनेट, कंप्यूटर आज उर्दू में बहुत महत्वपूर्ण है, इसे भी उर्दू का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाना चाहिए और इस पर शोध किया जाना चाहिए।

   कार्यक्रम की शुरुआत मुहम्मद तल्हा ने पवित्र कुरान की तिलावत से की। बाद में फरहत अख्तर ने हदीहाई नात पेश की। इस साहित्यिक कार्यक्रम का संयोजन प्रसिद्ध कथाकार और उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो असलम जमशेदपुरी ने किया।  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सगीर इफ्राहीम ने ऑनलाइन भाग लिया और जम्मू से डॉ. युसूफ रामपुरी और इरफान आरिफ ने थीसिस लेखक के रूप में भाग लिया। शोध विद्वान माह-ए-आलम द्वारा संचालन, फरीद शाहे जमन  द्वारा स्वागत भाषण तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. इरशाद स्यानवी द्वारा किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुए उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज का छात्र सहजता की तलाश में है। वह चाहता है कि उसे कोई विशेष मेहनत न करनी पड़े, इसीलिए शोध की गुणवत्ता गिरती जा रही है। आज का छात्र दूर-दूर घूमने, विभिन्न पुस्तकालयों की खाक छानने, शोध की बारीकियों को समझने से बचता है, जाहिर है मेहनत रंग लाती है।मानक को ऊपर उठाना होगा।

विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर सगीर इफ्राहीम ने कहा कि आधुनिक समय में शोध की गुणवत्ता में गिरावट और गुणवत्तापूर्ण शोध की कमी का कारण भी हमारे लोग ही हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि नए शोधार्थियों को शोध करने में क्या-क्या दिक्कतें आ रही हैं, उन्हें किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जब हम अपने विद्यार्थियों का सही और गंभीरता से मार्गदर्शन करते हैं, तो दोबारा शोध करने का कोई कारण नहीं बनता। मानक भले ही ऊंचे न हों, लेकिन इसके लिए विद्यार्थियों में गंभीरता, मेहनत और जुनून जरूरी है। छात्र जितनी अधिक मेहनत और लगन अपने अंदर विकसित करेंगे, उनके शोध में उतनी ही उत्कृष्टता नजर आएगी और यह भी देखा गया है कि समझकर पढ़ी गई चीजें लंबे समय तक दिमाग में ताजा और सुरक्षित रहती हैं।

अंत में अयुसा अध्यक्ष प्रो. रेशमा परवीन ने कहा कि शोधकर्ताओं को उर्दू के साथ-साथ अन्य भाषाओं तक भी पहुंच होनी चाहिए। इसलिए शोध करते समय हमें उर्दू के साथ-साथ अरबी, फारसी, अंग्रेजी का भी अध्ययन करना चाहिए।डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद, फैजान जफर, शाह जमां, माह-ए आलम, निजहत अख्तर, लाइबा आदि छात्र-छात्राएं ऑनलाइन जुड़े रहे।

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