मोहासक्त जीवन एक सपना है
- सत्येंद्र प्रकाश तिवारीज्ञानपुर, भदोही।
ज्ञान मनुष्य का हासिल नहीं है बल्कि उसकी यात्रा है। यह बात अलग-अलग समय में विचारकों और दार्शनिकों ने अपने-अपने तरीके से कही है। यह बात जब शंकर करते हैं तो वे कहते हैं कि मोह से भरा हुआ जीवन एक सपने की तरह है, यह तब तक ही सच लगता है जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे होते है। जब नींद खुलती है तो इसकी कोई सत्ता नहीं रह जाती है। शंकर जब यह कहते हैं तो जो एक बात ज्यादा गौर करने की है, वह यह कि वे मनुष्य और ज्ञान के बीच कोई विभक्ति नहीं देखते हैं। उनके लिए ज्ञान और मनुष्य अलग-अलग नहीं हैं। यह भी कि ज्ञान के बिना मनुष्य की किसी तरह की अस्मिता की बात नहीं की जा सकती है। यह भी कि ज्ञान और कुछ नहीं बल्कि मोहभंग की आत्मीय प्रतीति है। मोह और भोग के साथ जीवन को देखना, जागरण के उजाले को नींद में गंवा देने जैसा है।
आदि शंकर जब यह बात कहते हैं तो उनके विचार और दर्शन का दायरा आध्यात्मिक सूक्ष्मता तक पहुंच जाता है। इस लिहाज से आदि शंकर एक आदर्श नाम है। इस नाम के साथ जुड़े सारस्वत कृतित्व ने समय की लंबी यात्रा की है। उन्हें आचार्य की पदवी अपने समय में ही मिल गई थी। उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया। गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी उनकी टीकाएं आज तक अपनी अर्थवत्ता के बूते टिकी हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद का खंडन किया।
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