सब्जियों के तल्ख तेवर
हर साल बारिश के मौसम में जल्दी खराब होने वाली सब्जियों के दाम मांग व आपूर्ति के असंतुलन से बढ़ते हैं। लेकिन इस बार टमाटर के दाम दो सौ रुपये प्रति किलो तक पहुंचने ने सबको चौंकाया है। कभी प्याज को ये रुतबा हासिल था। जो न केवल आम लोगों की आंखों में आंसू ला देता था बल्कि सरकार गिराने-बनाने के खेल में शामिल रहता था। दिल्ली की कई सरकारों की जड़ें हिलाने का काम प्याज ने किया।
    कह सकते हैं कि तब मजबूत विपक्ष ने जनता के दर्द को राजनीतिक हथियार बनाने में कामयाबी पायी थी। अब जनता के लिये जरूरी सब्जियों की महंगाई को मुद्दा बनाने की कूवत व संवेदनशीलता विपक्षी दलों में नजर नहीं आती। कह सकते हैं कि या तो अब ये मुद्दे जनता की प्राथमिकता नहीं बन पा रहे हैं या विपक्षी दल जनता की मुश्किल को राजनीतिक अवसर में बदलने में नाकामयाब रहे हैं। यहां कवि धूमिल की एक चर्चित कविता चरितार्थ होती नजर आती है कि ‘एक आदमी रोटी बेलता है, एक रोटी खाता है लेकिन वो आदमी कौन है, जो न रोटी बेलता है और न खाता है मगर रोटी से खेलता है।’ कमोबेश फल-सब्जियों की महंगाई में एक घटक ऐसा भी है जो बाजार की हवा देखकर जमाखोरी पर उतारू हो जाता है। निस्संदेह, टमाटर आदि कुछ सब्जियां ऐसी हैं, जिनका भंडारण देर तक संभव नहीं है। जल्दी फसल तैयार होती है और जल्दी खत्म भी हो जाती है। लेकिन अदरक, लहसुन व प्याज का मुनाफाखोरों के गोदामों में भंडारण कुछ समय तक रह सकता है। खरबूजे को देख खरबूजे के रंग बदलने के मुहावारे के अनुरूप टमाटर की महंगाई को देख अन्य सब्जियों व उसमें तड़का लगाने में काम आने वाले लहसुन, प्याज व अदरक के दाम उछलने लगे हैं। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts