दूसरोंका हित ही स्वयं का हित है

- संजीव ठाकुर
मनुष्य में उत्साह से जीवन जीने की जिजीविषा होनी चाहिए। जीवन में आकस्मिकत परिवर्तनशीलता और निरंतर विकास की संभावनाओं की तलाश होती रहनी चाहिए। जो मनुष्य जीवन मानव जाति एवं समाज के समग्र कल्याण के लिए जीता है वह जीवन को सार्थकता की ओर अग्रसर करता है।
शास्त्रों में पुनर्जन्म की व्याख्या की गई है यदि इस जन्म अच्छा कार्य करेंगे तो अगले जन्म आपको पुनः मनुष्य की योनि प्राप्त होगी और आप फिर से मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे, पर मेरा यह मानना है की वर्तमान जीवन ही पहला और अंतिम जीवन है।इसलिए आने वाले जन्मों की परिकल्पना में यथार्थ से दूर भागना एक मिथ्या की तरह है। वर्तमान जीवन ही यथेष्ट है और इस जीवन में ही सर्वश्रेष्ठ अवदान देकर इस जीवन को मानव जीवन के कल्याण एवं सामाजिक व्यवस्था की बेहतरी के लिए किया गया कार्य ही जीवन की सफलता होगी।
व्यक्ति के जीने के अलग-अलग दृष्टिकोण और उद्देश्य हो सकते हैं अलग-अलग लक्ष्य की प्राप्ति भी मनुष्य के जीवन की अवधारणा हो सकती है, कोई आर्थिक लाभ एवं धन उपार्जन को अपने जीवन का लक्ष्य मानकर चलता है, और कोई इज्जत आबरु और सम्मान के प्रति आकर्षण में बंध कर राजनीति के उच्चतम शिखर पर पहुंचने की कामना के प्रयास में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां करने के प्रयास में रहता है। कोई विज्ञान के प्रति, कोई व्यवसाय के प्रति, कोई कला के प्रति, कोई संस्कृति के प्रति जीवन जी कर लोगों से आगे निकलने का प्रयास करता है।
जीवन के लक्ष्य जो भी हो पर उसमें प्रयासों की शुद्धता एवं सार्थकता सबसे ज्यादा मायने रखती है। मनुष्य को जिंदगी में उच्च मनोबल साहस संयम और तपस्या के साथ अपने जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कार्य करने की प्रेरणा समसामयिक परिस्थितियों से जूझने की इच्छा शक्ति एवं असफलता में ना घबराने तथा प्रयास के लिए सदैव तत्पर रहने की अदम्य जिजीविषा के साथ संघर्ष में विजयी होने की कामना भी होनी चाहिए। मनुष्य के जीने की स्वच्छंद प्रवृत्ति केवल मनुष्य को आनंद एवं आम संतोष प्रदान कर सकती है पर ईश्वर के बनाए मनुष्य की परिणति सर्वथा इसके विपरीत है, मनुष्य को सदैव प्रयत्नशील होकर मानवीय संवेदनाओं को सहेज कर जगत के कल्याण के बारे में तन मन धन से प्रयास करना चाहिए तभी मनुष्य के जीने का लक्ष्य संपूर्ण रूप से प्राप्त हो सकता है।
विभिन्न चिंतकों का मानना है कि जिंदगी एक रंगमंच है और हम सब अलग-अलग किरदार की तरह उसे निभाते चले जाते हैं। पर इस किरदार को निभाने में सच्चाई ईमानदारी प्रयत्नशीलता एवं संघर्षों के प्रति साहस जिंदगी को रुचिकर बनाकर आगे बढ़ने के प्रयास को द्विगुणित करते हैं। वैसे जीवन में सफलता और असफलता दोनों ही सिक्के के दो पहलू हैं और सफलता तथा असफलता को एक ही ही उत्साह से स्वीकार करने वाला व्यक्ति सफल व्यक्तित्व का मालिक हो सकता है।
जीवन में यदि लोभ,कामना,स्पृहा, लालच से यदि बचकर आगे बढ़ा जाए तो जीवन सात्विक तौर पर दार्शनिक जीवन माना जा सकता है पर ऐसे जीवन में आर्थिक तंत्र अत्यंत मजबूत हो इसकी कोई निश्चिंतता का कोई निश्चित परिणाम नहीं होता है। इसीलिए मनुष्य को सदैव आध्यात्मिक चिंतन,मनन, धर्म, संस्कृति और आर्थिक लाभ से सामंजस्य बनाकर समाज के निचले तबके के व्यक्ति के लिए समर्पित जीवन ही एक जीवन के मूल उद्देश्य का परिणाम हो सकती है। जीवन को रंगमंच की तरह जीने वाले और ऐसे नजरिया को अपनाने वाले व्यक्ति को क्षणवादी माना जा सकता है जो जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्णता वादी नजरिए से देखते हैं ऐसे ही लोग परिवर्तन को सबसे बड़ा सत्य मानते हैं और इनका उद्देश्य परिवर्तन ही सबसे बड़ा परिवर्तनशील कारक होता है।
जीवन में आने वाला हर पल अनिश्चित होता है इसका यह कतई आशाय नहीं है कि हम अपने आप को भाग्य के भरोसे छोड़ दें और कर्म को त्याग दें। यह निश्चित तौर पर सत्य है कि कर्म और भाग्य दोनों समानांतर चलने वाली प्रक्रिया है और कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में इन दोनों का सामंजस्य पूर्वक संतुलन बनाकर उपयोग मनुष्य के जीवन की प्राप्ति का एक साधन बन सकता है।
कर्म के साथ परिणामों को बहुत महत्व दिए जाने की आवश्यकता नहीं है यदि परिणाम व्यक्ति के अनुरूप नहीं होते तो निराशा की संभावना ज्यादा बलवती होती है इन परिस्थितियों में जीवन में सदैव कर्मशील रहकर सकारात्मक सोच के साथ जीवन को निरंतर चलाएं मान गतिमान रखने का अथक तथा निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए तब ही आप अपने जीवन के सद उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।
(चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़)

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