आर्थिकी और कूटनीति
आजकल शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) एक बार फिर चर्चा में है। गौरतलब है कि शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों का एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन 4 जुलाई 2023 को आयोजित किया गया था। इस वर्ष इस संगठन की अध्यक्षता की जिम्मेदारी भारत के हाथों में है। यह पहली बार है कि संगठन के जन्म (2001) के बाद और विशेष रूप से 2016 में एससीओ में पूर्ण सदस्य के रूप में भारत के शामिल होने के बाद, भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है। मूल रूप से इस संगठन की स्थापना यूरोप और एशिया (जिसे यूरेशिया भी कहा जाता है) के देशों के बीच आर्थिक और रक्षा सहयोग के लिए की गई थी। एससीओ की स्थापना से पहले उज्बेकिस्तान को छोडक़र 5 देशों का एक समूह ‘शंघाई फाइव ग्रुप’ 1996 से काम कर रहा था। बाद में इस समूह में उज्बेकिस्तान को भी शामिल कर लिया गया और एससीओ की औपचारिक स्थापना हो गई। नई दिल्ली में प्रस्तावित इस बैठक को अचानक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बदल दिया गया। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत के लिए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्रदर्शित करने का एक अच्छा अवसर था और दो दिवसीय भौतिक शिखर सम्मेलन इस काम को भलीभांति किया जा सकता था। हालांकि इस तर्क में दम है, लेकिन घटनाक्रम से पता चलता है कि इस बैठक के तरीके में बदलाव का शिखर सम्मेलन के नतीजों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री और अन्य राज्याध्यक्षों ने बैठक में भाग लिया। शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक स्थापना वर्ष 2001 में 6 देशों चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी। वर्ष 2016 में भारत और पाकिस्तान को एससीओ के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया था, हालांकि उन्हें शामिल करने का निर्णय 10 जुलाई 2015 को किया गया था। इस वर्ष ईरान को भी एससीओ की सदस्यता प्रदान की गई है। फरवरी 2022 में एससीओ के सदस्य देश आपसी व्यापार में अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग बढ़ाने पर सहमत हुए थे। इसे आगे बढ़ाते हुए भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपए में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के निपटान की अनुमति देते हुए एक परिपत्र जारी किया और तब से, 19 देशों के साथ वोस्ट्रो खाते खोले गए हैं और व्यापार का निपटान रुपए में होना शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा भारत के स्वतंत्र दृष्टिकोण का संकेत है। हालांकि, दूसरी ओर, रूस और चीन आर्थिक और रणनीतिक मामलों में अपने सहयोग को गहरा कर रहे हैं। लेकिन रूस के साथ भारत की सदाबहार दोस्ती भारत और रूस दोनों के लिए वरदान साबित हो रही है। भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के संबंध में भी तटस्थ रहना चुना है। हालांकि, एससीओ के ऑनलाइन शिखर सम्मेलन में रूस और चीन का रवैया खुल कर सामने आया, जिन्होंने मुखर रूप से अमेरिकी प्रतिबंधों को अस्वीकार कर दिया। 

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