गुणवत्ता से बढ़ी सरकारी स्कूलों की साख

- मनोज कुमार सिंह
एजुकेशन किसी भी स्तर का हो, हमेशा इस बात की चिंता की जाती रही है कि शिक्षा का स्तर सुधरे कैसे? खासतौर पर कोरोनाकाल के कारण जो स्थितियां उत्पन्न हुई थी, वह भयावह थी। महीनों तक स्कूल का कपाट तक नहीं देख पाने वाले बच्चे स्कूल जाने से डरने लगे थे। उनमें एकाकीपन भर आया था और तिस पर प्रायवेट स्कूलों की मनमानी से पालक चिंता में थे।
 यह बात भी सच है कि कोरोना काल में लोगों की आय में ना केवल गिरावट हुई बल्कि बड़ी संख्या में लोगों से रोजगार छीन गया। ऐसे में घर चलाने की चुनौती के बीच बच्चों के सुखद भविष्य की कामना से दुविधा की स्थिति में पालक थे। उनके सामने विकल्प के रूप में सरकारी स्कूल था और ज्यादतर पालकों ने मन मारकर निजी स्कूलों की मनमानी से तंग आकर सरकारी स्कूलों में दाखिला दिया। इन सबके बीच उनके मन में कई सवाल थे कि सरकारी स्कूल में उनका बच्चा कैसे पढ़ेगा और कैसे अपने भविष्य को संवारेगा लेकिन जब परीक्षा परिणाम आया तब सारे धुंध छंट गए थे। पालकों की सारी आशंका निर्मूल साबित हुई और बच्चे अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण कर गए।


कोरोना काल में बच्चों की शिक्षा बाधित ना हो इसके लिए राज्य शासन द्वारा अनेक स्तरों पर नवाचार किया गया। इस कठिन समय में बिना विद्यालय बुलाए बच्चों को उनके घर में ही पढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी लेकिन हर संकट का समाधान होता है सो इसका समाधान भी तलाश कर लिया गया। विकल्प के तौर पर ‘हमारा घर हमारा विद्यालय’ कार्यक्रम संचालित किया गया। इस अभिनव प्रयोग में शिक्षकों द्वारा 4-5 विद्यार्थियों का समूह बनाकर उन्हें उनके द्वारा चिन्हित स्थान पर उनकी आवश्यकता अनुसार शिक्षा दी गई। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी हुआ और विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष रूप से शिक्षित भी किया जा सका। कार्यक्रम से जनसमुदाय को भी प्रेरणा मिली और पालकों ने पूरा सहयोग दिया।
इसी क्रम में ‘अब पढ़ाई नहीं रूकेगी’ थीम पर रेडियो प्रसारण तथा डिजिटल गु्रप के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई के लिये शिक्षक सतत प्रयासरत रहे। प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सामग्री छात्रों का उपलब्ध कराकर उनसे गृहकार्य करवाया जाता है। ‘रेडियो स्कूल’ कार्यक्रम के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाया गया। जिन ग्रामों और घरों में रेडियो नहीं थे, वहां शिक्षकों ने लाउड स्पीकर के माध्यम से बच्चों तक स्कूल पहुंचाया। कोरोना संक्रमण की परवाह किये बिना विद्यार्थियों के भविष्य के लिये कई शिक्षकों ने आशातीत प्रयास किये हैं।
यही नहीं, समाज में शिक्षक का पद सबसे ऊंचा क्यों होता है, इस संकटकालीन परिस्थिति में देखने को मिला। राज्य के कई स्थानों पर शिक्षकों ने अपना दायित्व की पूर्ति करते हुए पीछे नहीं हटे।
दिल्ली दूर है कि तर्ज पर वह अपनी शिक्षा उस खंडहरनुमा भवन में पूरा करने के लिए मजबूर था जिसे सरकारी स्कूल कह कर बुलाया जाता था। बच्चों के इन सपनों की बुनियाद पर प्राइवेट स्कूलों का मकडज़ाल बुना गया और सुनियोजित ढंग से सरकारी स्कूलों के खिलाफ माहौल बनाया गया. शिक्षा की गुणवत्ता को ताक पर रखकर भौतिक सुविधाओं के मोहपाश में बांध कर ऊंची बड़ी इमारतों को पब्लिक स्कूल कहा गया. सरकारें भी आती-जाती रही लेकिन सरकारी स्कूल उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा।
अनादिकाल से गुरुकुल भारतीय शिक्षा का आधार रहा है लेकिन समय के साथ परिवर्तन भी प्रकृति का नियम है। इन दिनों शिक्षा की गुणवत्ता पर चिंता करते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति का हवाला दिया जाता है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में गुरुकुल नए संदर्भ और नयी दृष्टि के साथ आकार ले रहा है। सरकारी शब्द के साथ ही हमारी सोच बदल जाती है और हम निजी व्यवस्था पर भरोसा करते हैं। हमें लगता है कि सरकारी कभी असर-कारी नहीं होता है। 

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