रहिए: स्वस्थ बिन्दास  हेंगे

- डा. जगदीश सिंह दीक्षित
आज के भौतिकवाद के युग में भौतिकता और उपभोक्तावाद का तेजी से विकास हो रहा है। भौतिक सुख के लिए लोग-बाग अकूत संपत्ति अर्जित करने के लिए गलत तरीके को अपनाने में भी लोग हिचक नहीं रहे हैं। कुछ लोगों को मैं बहुत नजदीक से देखा हूँ कि जब उनकी गलत तरीके से होने वाली आमदनी कम होने लगती है तब वे मानसिक रूप से तनावग्रस्त होने लगते हैं। वे ही नहीं उनका पूरा परिवार भी काफी तनाव में रहता है। इसके पीछे कारण यह रहता है कि उनकी भौतिक सुख की जरूरतें कम पूरी होने लगती हैं। इससे मानसिक स्वास्थ्य भी खराब होने लगता है।        
खराब खान-पान भी स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है। आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं है। मन को जितना दौड़ाएंगे उतना ही वह दौड़ेगा। इसको घोड़े के लगाम की तरह कसकर रखना पड़ता है।जब लगाम ढीली होगी तो घोड़ा अपने मन का दौड़ेगा और घुड़सवार को कहीं न कहीं पटक देगा। इसलिए आवश्यकताओं को जितना ही सीमित रखकर चलेंगे उतना ही आप तनावमुक्त रहेंगे। जब आप तनावमुक्त रहेंगे तब आप।मानसिक रूप से ही नहीं बल्कि आप शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहेंगे।
एक गाँव में एक सेठ जी थे। वह बहुत ही अकूत संपत्ति अर्जित कर रखे थे। एक दिन उन्होंने अपने मुनीम जी को बुलाकर कहा कि-जरा मुनीम जी बही-खाता लेकर हिसाब- किताब करिए कि यह मेरी संपत्ति कितनी पीढ़ी तक चलेगी। मुनीम जी ने सब हिसाब करके बताएं कि सात पीढ़ी तक तो आराम से चल जाएगी।लेकिन आठवीं पीढ़ी के लिए मुश्किल होगी। सेठ जी काफी तनाव में रहने लगे। गाँव में एक सप्ताह से एक आचार्य जी प्रतिदिन सायं कथा वाचन करते थे। वह सेठ जी भी एक दिन कथा सुनने के लिए पीछे जाकर बैठ गए। आचार्य जी की पैनी नजर उन पर पड़ गई। जब कथा समाप्त हो गई तब आचार्य जी ने सेठ जी को अपने पास बुलाकर पूछा कि- क्या बात है सेठ जी? सेठ जी ने अपना दुखड़ा आचार्य जी को सुनाया।


आचार्य जी ने उनको एक सरल समाधान बताया। आचार्य जी ने कहा कि-सेठ जी आपके गाँव में नदी किनारे एक झोपड़ी में एक बुढ़िया रहती है उसे आधा किलो आटा ले जाकर दीजिए वह आपको सारा उपाय बता देगी।सेठ जी घर आकर दूसरे दिन दो बैलगाड़ी पर सामान रखकर चल दिए। बुढिया पूजा पाठ में लीन थी। जब वह पूजा पाठ करके उठीं तब सेठ जी ने पूरा सामान रख लेने का आग्रह किया। बुढिया ने सामान रखने से मना कर दिया। अंत में सेठ जी ने आधा किलो आटा लेने का आग्रह किया। बुढिया ने कहा कि क्या करेंगे। वह देखो एक किसी ने कुछ सामान रखकर चला गया है।
सेठ जी के आग्रह को बुढिया ने यह कहकर ठुकरा दिया कि कोई जरूरत नहीं है। मैं कई दिनों तक बिना खाए भी रह सकती हूँ। सेठ जी को उत्तर मिल गया। धन संचय की प्रवृत्ति का जब आप परित्याग करेंगे तो आप सुखी रहेंगे। एक मेरे घर ममता कुछ भोजन कार्य में सहयोग करने के लिए आती है। वह कई घरों में काम करती है। हमेशा मस्त और आनंदित रहती है। बिन्दास हंसती है। मेरे छोटे डागी हैरी के साथ जब तक वह 5-7 मिनट खेल नहीं लेती है तब तक न तो ममता को ही और न ही हैरी को ही चैन रहता है। दोनों ही बिंदास तरीके से आनंद लेते हैं।
मेरी एक छात्रा डॉ. सुरभि अस्थाना है। वह भी हमेशा बिन्दास हंसती है।जब कभी वह मुझे फोन करती है तब। मैं कहता हूँ कि-क्या है पग्गल तब वह और जोर-शोर हँसती है। पढते समय से मैं उसे देखता हूँ कि कभी भी वह निराश नहीं रही। ममता और सुरभि दोनों ही बड़े बिंदास तरीके से रहते भी हैं और ठहाका भी लगाते हैं। इसलिए बिंदास रहिए। स्वस्थ भी रहेंगे और आनंदित भी रहेंगे।
(नामित सदस्य राम मनोहर लोहिया अवध विवि, अयोध्या)

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