आसान नहीं शांति प्रयास

विश्व राजनीति के दूसरे ध्रुव रूस की यूक्रेन युद्ध के बाद घटती वैश्विक स्वीकार्यता से पैदा हुए शून्य को भरने की कोशिश शी जिनपिंग करते नजर आ रहे हैं। मध्यपूर्व में दो विपरीत ध्रुवों ईरान व सऊदी अरब में मेल-मिलाप कराने में मिली सफलता के बाद शी जिनपिंग अब खुद को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने की कवायद में जुटे हैं। शी की रूस यात्रा को इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। वे यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिये पेश शांति योजना के जरिये दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं इस यात्रा को रूस व चीन मित्रता की सीमाओं से परे बता रहे हैं। बहरहाल, रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच बीजिंग अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में बढ़त हासिल करने की आकांक्षा को दर्शा रहा है। वहीं रूस का सरकारी मीडिया भी अब संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों की दुहाई, सभी देशों की वैध सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करने और संकट के शांतिपूर्ण समाधान के अनुकूल प्रयासों का समर्थन करने पर बल दे रहा है।  दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन कोरोना संकट और वैश्विक मंदी के प्रभावों से उबरने की कोशिश के बीच वैश्विक औद्योगिक व आपूर्ति श्रृंखला की स्थिरता सुनिश्चित करने की जरूरत भी बता रहा है। निस्संदेह, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने मित्र देश चीन के मुखिया के रूस आगमन से उत्साहित हैं। वह भी ऐसे समय में जब अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने कथित युद्ध अपराधों के लिये उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। हालांकि, मास्को व बीजिंग ने अदालत के फैसले की निंदा की है। वास्तव में चीन मजबूती के साथ रूस के समर्थन में डटा है। दरअसल, चीन रूस से मित्रता निभाते हुए अपनी छवि को एक शांति स्थापक के रूप में बनाने की कोशिश में है। विडंबना देखिये कि तमाम पड़ोसियों के खिलाफ गाहे-बगाहे हमलावर रहने और छोटे देशों को धमकाने के प्रयासों में लगे रहने वाला चीन आज शांति की दुहाई दे रहा है। दरअसल, चतुर रणनीतिकार शी यूरोप में प्रभाव बढ़ाने के साथ यूक्रेन युद्ध में खुद को प्रभावी पक्ष के रूप में दर्शाना चाहते हैं। वहीं यह यूरोपीय कूटनीति में अमेरिका की स्थिति कमजोर करने का भी प्रयास है। यानी चीन एक तीर से कई निशाने लगाने की फिराक में है। जहां तक भारत का सवाल है तो शुरुआती दौर में युद्धरत देशों को बातचीत की मेज पर लाने के प्रयासों के बाद वह सक्रिय भागीदारी से पीछे हट गया। भारत की तटस्थता भी कसौटी पर है क्योंकि क्वाड सदस्य देश अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान रूस का मुखर विरोध कर रहे हैं। ऐसे में चीन की दखल के बाद भारत के लिये यूक्रेन के मुद्दे पर कूटनीतिक प्रयासों में असहजता नजर आएगी। मगर विश्व की कूटनीति में बड़ी भूमिका की आकांक्षा रखने वाला भारत महज तमाशबीन बनकर नहीं रह सकता। बहरहाल, संकटों से घिरे पुतिन के लिये शी की तीन दिवसीय यात्रा एक संबल जरूर बनेगी। यह आने वाला वक्त बताएगा कि शी की बारह सूत्रीय शांति योजना को अन्य यूरोपीय देशों का कितना सकारात्मक प्रतिसाद मिलेगा। बहरहाल, अच्छी बात यह है कि यूक्रेन ने भी औपचारिक रूप से चीन से आग्रह किया है कि वह अपने बेहतर संबंधों के चलते रूस से युद्ध को समाप्त करने में भूमिका निभाये। 

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