राहुल के बहाने...!
राहुल गांधी की सांसदी क्या रद्द हुई विपक्षी दलों को एक बहाना मिल गया। सांसदी रद्द होने के तुरंत बाद ही विपक्षी एकता के शुरुआती संकेत मिलने लगे हैं। हालांकि यह अंतिम स्थिति नहीं है और औपचारिक गठबंधन फिलहाल बहुत दूर है, लेकिन जो बदलाव सामने दिखे हैं, वे भी महत्त्वपूर्ण हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी राहुल गांधी के पक्ष में बयान देते हुए लगभग वही जुबां बोली है, जो कांग्रेस और उसके सनातन विपक्षी साथी दल बोलते रहे हैं। सोमवार को नेता विपक्ष खडग़े के नेतृत्व में, काले कपड़े पहन कर, विपक्ष ने ‘ब्लैक प्रोटेस्ट’ किया और विजय चौक तक मार्च किया। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद सोनिया गांधी भी काली साड़ी पहन कर सडक़ पर उतरीं। खडग़े द्वारा आयोजित रात्रि-भोज में 17 विपक्षी दलों के नेताओं ने शिरकत की। साझा एहसास होने लगा है कि यदि 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को तगड़ी टक्कर देनी है, तो विपक्ष को अपने बौने मतभेद भुलाने होंगे और भविष्य की व्यापक राजनीति पर सोचना, चिंतित होना पड़ेगा। विपक्षी एकता का पहला संकेत कर्नाटक से मिल रहा है कि कांग्रेस और जद-एस के बीच अनौपचारिक गठबंधन लगभग तय है। औपचारिक मुहर बाद में लगेगी, लेकिन वे साझा तौर पर चुनाव में उतरेंगे और उम्मीदवार भी साझा होंगे। उनका आकलन है कि भाजपा को पराजित भी किया जा सकता है। दरअसल करीब एक साल के अंतराल के बाद तृणमूल कांग्रेस ने अपने दो सांसदों को नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की बैठक में भेजा। हालांकि तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने अपने संसदीय दल के नेताओं को बैठक से दूर ही रखा है, लेकिन घुटनों ने पेट की ओर मुडऩा शुरू कर दिया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री एवं ‘भारत राष्ट्र समिति’ (बीआरएस) के अध्यक्ष चंद्रशेखर राव की, कांग्रेस के प्रति, तल्खी और विमुखता कुछ कम हुई है। ‘आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल की प्रतिक्रिया सबसे आक्रामक रही। हालांकि माना जाता है कि कांग्रेस राजनीति में जो ‘शून्य’ पैदा कर रही है, ‘आप’ वहीं विकल्प देने की कोशिश कर रही है। कुछ महत्वपूर्ण सफलता भी मिली हैं। राहुल के मुद्दे पर केजरीवाल का मूड कुछ बदला है, लिहाजा ‘आप’ के नेता भी विपक्षी खेमे में दिखने लगे हैं। राजनीति कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही स्तर पर ‘राष्ट्रीय’ होने जा रही है, क्योंकि दोनों के आंदोलन देश भर में किए जाने हैं। आश्चर्य यह है कि राहुल गांधी ने निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती क्यों नहीं दी? 

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