स्वतंत्र हो चुनाव आयोग
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों द्वारा उठाये जा रहे सवालों के क्रम में शीर्ष अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति के लिये नई व्यवस्था दी है। जो इस बाबत संसद द्वारा कानून बनाये जाने तक लागू रहेगी। निश्चित रूप से इस कदम से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी व विश्वसनीय बनाने में मदद मिल सकेगी। यक्ष प्रश्न यह भी है कि जब सरकार इस विषय पर कानून बनायेगी तो चयन प्रक्रिया का वास्तविक स्वरूप कैसा होगा और न्यायालय की प्रक्रिया का किस हद तक अनुपालन होगा। इसके अलावा अन्य चुनाव सुधारों के जरिये चुनाव आयोग को अधिक प्रभावी-सशक्त बनाने की भी जरूरत है। इस तदर्थ व्यवस्था के बाबत शीर्ष अदालत ने कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त व दूसरे आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश व विपक्षी नेता की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी। यदि संसद में विपक्षी नेता न हो तो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को यह अधिकार दिया जायेगा। उल्लेखनीय है कि अब तक यह कार्य सरकार द्वारा ही किया जा रहा था। लेकिन पिछले दिनों पंजाब के एक पूर्व नौकरशाह को जिस तरह आनन-फानन में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया, उसे कोर्ट ने बिजली की तेजी से नियुक्त बताते हुए इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठाये थे। दरअसल, इस बाबत अतीत में दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिये सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी। जिसने अपना फैसला बीते नवंबर माह में सुरक्षित कर लिया था। कहीं न कहीं यह देखा जा रहा था कि सरकार निरंकुश व्यवहार कर रही है और विपक्ष की मांगों व सलाह को सिरे से खारिज कर रही है। कमोबेश इसी तरह का टकराव न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर भी जारी रहा है। जिसके चलते न्यायपालिका व कार्यपालिका में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रही है। अब न्यायिक प्रक्रिया में जारी कॉलेजियम व्यवस्था की तर्ज पर ही चुनाव आयुक्तों के चयन की व्यवस्था को सिरे चढ़ाने की पहल हुई है। दरअसल, संविधान में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर स्पष्ट प्रक्रिया की व्याख्या नहीं की गई है जिसका लाभ केंद्र में सत्तारूढ़ सरकारें मनमाने व्यवहार करके उठाती रही हैं। वह अपनी सुविधा के अनुरूप अधिकारियों की नियुक्ति करती रही हैं। जिसके चलते आयोग की कारगुजारियों को लेकर गाहे-बगाहे सवाल उठाये जाते रहे हैं। दरअसल, इन्हीं विसंगतियों के चलते ही चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिये न्यायिक प्रक्रिया में लागू कॉलेजियम जैसी व्यवस्था स्थापित करने की बात कही जाती रही है। इस बाबत शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने भी स्पष्ट कानून की बात को स्वीकार किया। साथ ही यह व्यवस्था दी कि जब तक कानून नहीं बनता संविधान पीठ द्वारा दी गई व्यवस्था का ही अनुपालन किया जाये। निस्संदेह, यदि मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर सशक्त व निष्पक्ष प्रक्रिया से चुना गया अधिकारी होगा, तो निश्चित ही टी.एन. शेषन जैसी सशक्त व निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को फिर से अंजाम दिया जा सकेगा। 

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