दूर हो बदहाली
आजादी के सात दशक बाद भी तमाम स्कूल पेयजल और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं। हर अध्ययन रिपोर्ट में इस समस्या को स्कूली शिक्षा में सुधार की सबसे प्राथमिक जरूरत के तौर पर दर्ज किया जाता रहा है। मगर हकीकत यह है कि दशकों से यह एक तरह से आश्वासन ही बना हुआ है। गौरतलब है कि शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट यानी एएसईआर 2022 में फिर यह उजागर हुआ है कि देश के करीब एक चौथाई स्कूलों में आज भी पीने के पानी की सुविधा नहीं है। इसके अलावा, लगभग इतने ही यानी एक चौथाई स्कूलों में विद्यार्थियों को शौचालय की सुविधा हासिल नहीं है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के अधिकार से जुड़े स्कूली मानकों में अगर अपेक्षित के बजाय मामूली सुधार दर्ज किया गया है तो यह कोई हैरानी की बात नहीं है। 




सवाल है कि आए दिन देश की शिक्षा व्यवस्था को वैश्विक आयाम देने के वादे आखिर किस बुनियाद पर पूरे किए जाएंगे! स्कूली शिक्षा को लेकर हुए अब तक के तमाम अध्ययनों यही बताया गया कि स्कूलों में शौचालय और पेजयल जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव के रहते पढ़ाई-लिखाई का बेहतर माहौल बन पाना मुमकिन नहीं है। यह कल्पना भी तकलीफदेह है कि जिन स्कूलों में पेयजल और शौचालय की सुविधा नहीं है, वहां बच्चों को प्यास लगने या लघुशंका आदि की जरूरत पड़ने पर किस तरह की परिस्थितियों से गुजरना पड़ता होगा। खासकर लड़कियों के सामने कैसी समस्या खड़ी होती होगी। एएसईआर की ताजा रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि करीब ग्यारह फीसद स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। ऐसे आकलन पहले भी आ चुके हैं कि स्कूली शिक्षा के दौरान लड़कियों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के पीछे खासतौर पर स्कूल में शौचालय और पेयजल का अभाव एक बड़ा कारक रहा है। पीने का पानी और शौचालय न केवल स्कूलों, बल्कि हर जगह के लिए एक प्राथमिक जरूरत है। इसके अभाव में पढ़ाई-लिखाई तो दूर, कोई भी देर तक किया जाने वाला काम सहज तरीके से संभव नहीं है।  यह कहने की जरूरत नहीं कि अगर देश में शिक्षा की सरकारी व्यवस्था इतनी व्यापक और चिंताजनक खामियों से गुजर रही है, तो ऐसे में कैसा भविष्य बनने वाला है! 

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