पुलिस की जवाबदेही भी तय हो
नये साल की भोर से पहले दिल्ली की सुल्तानपुरी में स्कूटी सवार लड़की के साथ जो क्रूरता हुई उसने हर भारतीय को विचलित किया। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कार चालक व सवार लोगों की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि उन्होंने तड़पती लड़की को रौंदती गाड़ी में कुछ असामान्य महसूस नहीं किया। असंभव है कि स्कूटी को हिट करके भागने के बाद उन्हें कुछ असामान्य घटता महसूस न हुआ हो। विडंबना देखिये कि देश की राजधानी में नये साल के हुड़दंग के चलते पुलिस की सख्ती और ज्यादा फोर्स व गश्ती वाहन तैनात करने के दावे किये जा रहे थे। जगह-जगह पर पुलिस के नाके लगाने के दावे के बावजूद किसी पुलिस वाले की नजर अपराधियों पर नहीं पड़ी। इस रास्ते पर सीसीटीवी कैमरों का न होना भी सवाल खड़ा करता है। बताते हैं कि प्रत्यक्षदर्शियों ने कार से लड़की को घसीटता देखे जाने के बाद पुलिस को फोन किया लेकिन वह तब पहुंची जब लड़की दम तोड़ चुकी थी। पुलिस ने पांच आरोपियों को पकड़ा है, जिसमें एक राजनीतिक दल का नेता भी है। हालांकि, मृतका के परिजन यौन हिंसा के बाद हत्या होने के आरोप लगाते रहे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह आरोप पुष्ट नहीं हुआ। हालांकि, बाद में युवती के साथ स्कूटी पर जा रही लड़की ने स्पष्ट किया कि उनकी स्कूटी को कार ने टक्कर मारी थी। उसने यह भी दलील दी कि वह जांच-पड़ताल के डर से घटना स्थल से भाग गई थी। आरोपियों की दलील है कि कार में तेज संगीत चल रहा था और नशे के कारण कार के नीचे किसी के होने का पता उन्हें नहीं चला। उनके इस आपराधिक कृत्य के लिये ऐसी दलील स्वीकार्य नहीं है। निस्संदेह, कार सवारों के इस अमानवीय कृत्य को किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जा सकता। उन्हें इसके लिये कड़ा दंड मिलना ही चाहिए। यह सिर्फ ‘हिट एंड रन’ का ही मामला नहीं है। वे एक क्रूर हत्या के भी गुनहगार हैं। कल्पना करके भी डर लगता है कि एक जिंदगी कार के टायरों व सड़क के बीच रौंदी जाती रही और पुलिस व समाज से उसे कोई मदद नहीं मिली। इस भयानक कृत्य में पुलिस की लापरवाही अक्षम्य है। पुलिस चुस्त-दुरुस्त होती तो शायद एक जान बच जाती। शायद पुलिस-कानून का भय समाप्त होने से अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं। सवाल आये दिन घटने वाली अमानवीय घटनाओं का भी है। आखिर इंसान इतना संवेदनहीन व क्रूर क्यों होता जा रहा है? नये साल मनाने का ऐसा जुनून भी क्या कि एक लड़की की दर्दनाक चीख शराब के नशे और कानफोड़ू संगीत के तले दब कर रह गई। कार चालकों में इंसानियत होती तो वे स्कूटी को टक्कर मारने के बाद उसका हालचाल पूछते। उसे यदि अस्पताल ले जाते तो शायद उसकी जिंदगी बच जाती। यह अक्षम्य अपराध है कि पहले स्कूटी को टक्कर मारी, लड़की को रौंदा और फिर उसे घसीटते हुए भाग खड़े हुए। घटना किसी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। जो मानवीय मूल्यों के क्षरण के खतरों से हमें रूबरू कराती है। विडंबना यह है कि इस घिनौने कृत्य से एक ऐसी लड़की की जिंदगी चली गई जो एक बीमार मां, चार बहनों व दो छोटे भाइयों के जीवनयापन के लिये संघर्ष कर रही थी। इस वीभत्स कांड की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। पुलिस की जवाबदेही के साथ मामले की जांच होनी चाहिए। साथ ही दुपहिया वाहनों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। खासकर जो लोग विषम परिस्थितियों में काम करके लौट रहे होते हैं। 

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