आर्थिक असमानता
उदारीकरण-वैश्वीकरण के दौर के बाद भारत में अमीरी-गरीबी की खाई तेजी से गहरी हुई है। कोरोना संकट से उपजे हालात ने अंतर को और बढ़ाया है। नये-नये धनकुबेरों ने अकूत संपदा जुटाई है। जाहिर है राजाश्रय और कानूनी संरक्षण के बिना यह आर्थिक असमानता का समुद्र हिलोरे नहीं ले सकता। विभिन्न संस्थाओं के सर्वेक्षण और मीडिया संस्थानों की रिपोर्टें गाहे-बगाहे इस आर्थिक असमानता की तस्वीर उकेरते रहे हैं। अब दावोस में होने वाली विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक से पहले ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अध्ययन में सोमवार को खुलासा हुआ कि भारत के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का चालीस फीसदी हिस्सा है। वहीं निचले तबके के पास कुल तीन फीसदी हिस्सा ही है। ऑक्सफैम द्वारा जारी वार्षिक असमानता रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देश के सबसे दस अमीरों पर पांच फीसदी कर लगा दिया जाए तो सभी बच्चों को स्कूल वापस लाने के लिये पूरा पैसा मिल सकता है। वहीं रिपोर्ट आकलन करती है कि यदि भारत के अरबपतियों की संपत्ति पर दो फीसदी की दर से एक बार कर लगाया जाता है तो इस राशि से देश में अगले तीन साल तक कुपोषित लोगों के पोषण के लिये 40,423 करोड़ रुपये की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिक द्वारा अर्जित मेहनताने के एक रुपये के मुकाबले केवल 63 पैसे ही मिलते हैं। ग्रामीण श्रमिकों व वंचित वर्गों के लिये यह अंतर और अधिक है। गरीब लोग अमीरों के अनुपात में अधिक करों का भुगतान करते हैं। वे आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं। यह भी कि अब अमीरों पर कर लगाने तथा उसके भुगतान को सुनिश्चित करने का समय आ गया है। निश्चित रूप से अब समय आ गया कि उस मिथक को तोड़ा जाये जो कहता है कि अमीरों को करों में छूट से आर्थिक विकास होता है। निस्संदेह, समाज में असमानता को दूर करने तथा लोकतंत्र सशक्त करने के लिये जरूरी है कि पूंजीगत लाभ व बड़े अमीरों पर न्यायसंगत ढंग से कर लगे। साथ ही शिक्षा व स्वास्थ्य का वैश्विक मानकों के अनुरूप बजट बढ़ाया जाये।
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