जलवायु पर संजीदगी ज़रूरी

जलवायु परिवर्तन और धरती के तापमान में बढ़ोतरी के भयावह नतीजे हमारे सामने आने लगे हैं। यह वर्ष न केवल सर्वाधिक गर्म वर्षों में रहा, बल्कि दुनिया के बड़े हिस्से में भारी बाढ़, सूखे, भूस्खलन, जंगली आग, असमय और बहुत अधिक बारिश आदि का प्रकोप रहा। यदि अब भी धरती के तापमान को नियंत्रित करने के ठोस उपाय नहीं किये गये, तो वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना तो दूर, इसे दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर पाना लगभग असंभव हो जायेगा। संतोष की बात है कि लोगों, खासकर युवाओं, में इस आपात मुद्दे को लेकर चिंता और जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन चुनौती को देखते हुए यह सब पर्याप्त नहीं है। पिछले वर्ष ग्लासगो में आयोजित जलवायु सम्मेलन का मुख्य फोकस स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना था। भारत समेत कई देशों ने अपने संकल्प और प्रतिबद्धता को विश्व समुदाय के समक्ष स्पष्टता से रखा था। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में उपस्थित होकर यह घोषणा की थी कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के तीव्र विकास के लिए प्रयासरत है और हमारी अर्थव्यवस्था 2070 तक पूरी तरह से उत्सर्जन मुक्त हो जायेगी। इस संबंध में भारत की उपलब्धि को वैश्विक स्तर पर सराहा भी गया है। लेकिन विकसित देश हमारे जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उत्सर्जन में कमी के लिए वांछित निवेश में समुचित रुचि नहीं दिखा रहे हैं। जलवायु संबंधी निवेश के बिना विकासशील देश अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसी से जुड़ा विषय जलवायु संकट से आ रही आपदाओं से हुए नुकसान की भरपाई के लिए वैश्विक कोष बनाने का है। ऐसे कोष के लिए संस्थागत और संरचनात्मक स्वरूप बनाने में भी देरी नहीं होनी चाहिए।

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