(अक्षय नवमी पर विशेष)
दुख और दरिद्रता हरनीति है आंवले की पूजा- शिवचरण चौहान
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है और आंवले के नीचे ही बैठकर दोपहर का खाना खाया जाता है। आंवले का पूजन करने से दुख और दरिद्रता मिट जाती है शरीर निरोग रहता है। ऐसी मान्यता हमारे शास्त्रों में वर्णित है।
शास्त्रों में वृक्षों की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। पीपल,
बरकत जैसे वृक्षों की पूजा करने का विधान पुराणों में भी मिलता है।
इसी तरह कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के वृक्ष की पूजा का भी महात्म्य बताया गया है। ऐसा मान्यता है कि आंवले में बिल्व
और तुलसी दोनों के गुण मौजूद हैं और भगवान विष्णु को आंवला का फल प्रिय है। इसलिए अक्षय नवमी को आंवला की पूजा भी करने का विधान है।
कहा जाता है कि इस दिन जो पुण्य या उत्तम कार्य किए जाते हैं, उसका फल जीवन भर मिलता है। अक्षय नवमी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु और शिव के दर्शन करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। इस दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य अंत किया था और उसके रोम से कुष्मांड की बेल उत्पन्न हुई थी। इसी वजह से इस दिन कुष्मांड ( कुम्हड़ा) का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इस दिन गंध, पुष्प और अक्षतों से कुष्मांड का पूजन करना चाहिए। इस दिन विधि-विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल प्राप्त होता है। इस दिन अगर साधक पति पत्नी सहित उपासना करे तो भक्त शांति, सदभाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है। इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान हरि के नाम के जप का संकल्प करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर नमः मंत्र से आंवले के वृक्ष में दूध की धार गिराते हुए पितरों का तर्पण करना श्रेयस्कर माना गया है।
आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में आंवले के फल से अनेक दवाइयां बनाई जाती हैं जो कफ पित्त और वात रोगों में लाभकारी हैं। कहते हैं आंवले के वृक्ष में भगवान श्री विष्णु और लक्ष्मी जी का निवास है। इसी कारण नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है। कुम्हड़े के फल के साथ में दान दक्षिणा दी जाती है और खाना बना कर खिलाया, खाया जाता है। आंवला त्रिफला का एक घटक है। आंवला की जड़ फल फूल पत्तियां अनेक औषधीय दवाइयों/ कामों में प्रयोग आती हैं! आंवला से ही च्यवनप्राश बनता है।
आंवला को अमृत फल कहा गया है। हरड़, बहेड़ा और आंवला को मिलाकर त्रिफला बनता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। आंवला नेत्र ज्योति बढ़ाता है और बीपी शुगर को नियंत्रित करता है। धनवंतरी के शिष्य सुश्रुत ने आंवले को खट्टे काषाय फलों में सबसे ज्यादा उपयोगी माना है । ऐसा माना जाता है कि महर्षि च्यवन ने च्यवनप्राश के सेवन से नया जीवन प्राप्त किया था।
आंवला च्यवनप्राश का प्रमुख तत्व है। विभिन्न भाषाओं में इसके अनेक नाम हैं हिन्दी में - आमला, आंवला या औरा, बंगाली में- आमलकी, संस्कृत में के आमलकी, आदिफल, अमरफल, धात्रीफल, तेलगू में- नीलीकाई, फारसी में- आमलर, अंग्रेजी में- इंडियन गूजबैरी का या एम्बलिक मायरोब्लान तथा लेटिन में -एम्बलिका ऑफी सिनेलिज या फिलेन्थस एम्बलिका कहते हैं।
आंवले वृक्ष की उत्पत्ति भारत में ही हुई है। यह भारत में प्राय: सभी स्थानों में पाया जाता है । लगभग 4500 फीट की ऊंचाई ,पर भी इसके वृक्ष पाये जाते हैं। आंवले की कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी में पूजा भी की जाती है। ये दो किस्मों के होते हैं।
महर्षि चरक ने आंवला को वात, पित्त, कफ को नाश करने वाला कहा है। यह अग्निदीपक और पाचक है । सुश्रुत ने.आंवला को पित्त शामक की संज्ञा दी है। चक्रदत्त के अनुसार आंवला खून की उल्टी बंद करने में उपयोगी है। सांस यानी श्वसन संबंधी रोगों में आंवला अति लाभकारी है। फेफड़ों के क्षय-रोग, दमा और ब्रांकायटिस में इसका उपयोग किया जाता होता है। हिचकी और वमन यानी उल्टी में मिश्री के साथ आंवले का रस दिन में 2-3 बार सेवन करने से हिचकी और वमन रोग दूर हो जाता है
आंवले में विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है इसलिये इसके प्रयोग से मधुमेह में आराम मिलता है। यदि इसका सेवन जामुन और करेला के साथ किया जाये तो और भी उपयोगी होता है।
हमारे पेड़ पौधे हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं इसलिए हमारे पूर्वजों ने वृक्षों के पूजन की परंपरा शुरू की थी। पीपल, बरगद, आंवला, आम, पलाश आज अनेक वृक्षों पौधों और कुश कांस की पूजा की जाती है। यह सारे पेड़ पौधे पर्यावरण की हितैषी और औषधियों के निर्माण में काम आते हैं।
(स्वतंत्र लेखक, कानपुर)
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