भू-जल संकट


पृथ्वी में उपलब्ध कुल जल की मात्रा का 98 प्रतिशत जल भूजल भण्डारों में निहित है। इसलिए दुनिया के उन सवा दो अरब लोगों, जिनके पास अभी भी पीने के लिए सुरक्षित जल नहीं है, भूजल बड़ी आशा की किरण है। भारत में उपलब्ध जल का 90 प्रतिशत प्रदूषित है। जमीन में अवशोषित प्रदूषण हमारी जल प्रणालियों में समा जाते हैं और वापस हमारे गिलास या थाली में भी पहुंच जाते हैं। दरअसल, उद्योगों, खेती व सीवेज से भूजल में आर्सेनिक, फलोराइड, नाइट्रेट, आयरन जैसे प्रदूषणों में बढ़ोत्तरी हो रही है। शौचालयों के सोकपिटों से भी भूमिगत जल भण्डारों के प्रदूषित होने की आशंका रहती है। हर साल भारत 245 बिलियन क्यूबिक मीटर्स (बीसीएम) जल निकालता है। यह दुनिया के कुल निकाले जाने वाले भूजल का 25 प्रतिशत है। इससे भी 222 बीसीएम खेती में और 23 प्रतिशत घरेलू व औद्योगिक क्षेत्र में लगता है। दिल्ली बंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद जैसे 21 भारतीय मुख्य महानगरों में भूजल भण्डार खाली होने की स्थितियां हैं। नीति आयोग का आकलन था कि देश में भूजल दोहन की वर्तमान प्रवृत्ति यदि बनी रही तो देश में 2030 तक 40 प्रतिशत के करीब ऐसे लोग हो जायेंगे, जिन्हें पानी की आवश्यक उपलब्धता से वंचित होना पड़ेगा। चिन्ताजनक यह भी है कि वर्तमान में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 2 प्रतिशत की दर से घट रही है। बरसातें हमें ज्यादा मदद इसलिये भी नहीं कर पा रही हैं क्योंकि इसका केवल 8 प्रतिशत ही हाथ आता है। इसी क्रम में 2021 के पिछले विश्व जल दिवस पर आरंभ किया गया जलशक्ति अभियान कैच द रेन अर्थात‍् बरसात को पकड़ो पर निरंतर बढ़ते रहना जरूरी है। भूजल दोहन अब भूजल खनन होता जा रहा है।

भूजल वाहिनियां पर्वत कटान, सड़क निर्माण या विस्फोटों से क्षतिग्रस्त हो रही हैं अथवा ग्लोबल वार्मिंग से भी जल स्रोत सूख रहे हैं। साथ ही पानी की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है। सुखद यह है कि सूखते जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने पर भी काम हो रहा है। भूजल में मितव्ययिता इसलिये भी जरूरी है कि इसके रिचार्ज में सालों लग सकते हैं। पर्याप्त मात्रा में भूजल का बना रहना जलवायु बदलाव के कुप्रभावों को कम करने में बहुत मददगार होता है।


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