परिवार नियोजन में पुरुष भागीदारी की अनूठी मिसाल

आशा कार्यकर्ता की पहल रंग लाई, एक ही गाँव के 19 पुरुषों ने नसबंदी अपनाई
- पुरुष नसबंदी पखवाड़ा में आठ ने तो अन्य ने बाद में नसबंदी की सेवा पायी 
मुजफ्फरनगर, 21 जून – 2022 । परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने की खतौली ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गालिबपुर की आशा कार्यकर्ता सुदेश की पहल रंग लायी है। उनके प्रयास से एक ही गाँव के 19 पुरुषों ने नसबंदी की सेवा अपनाकर पुरुष नसबंदी से जुड़ी भ्रांतियों पर विराम लगाने की कोशिश की है । इसके साथ ही यह भी सन्देश देने की कोशिश की है कि शारीरिक बनावट की वजह से महिला नसबंदी की अपेक्षा पुरुष नसबंदी ज्यादा सरल और सुरक्षित है। सुदेश की यह पहल एक बड़े बदलाव का संकेत है, जिसके लिए वह विभाग की पहचान बन चुकी हैं और उन्हें सम्मानित भी किया गया है। 
सुदेश को स्वास्थ्य विभाग ने परिवार नियोजन साधनों को अपनाने के लिए महिला व पुरुषों को प्रेरित करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। इस काम में वह पूरी लगन के साथ जुटी हैं। उन्होंने सबसे पहले गांव के उन सभी पुरुषों से संपर्क साधा, जिनका परिवार पूरा हो चुका है। पुरुषों के साथ ही उनकी पत्नी की काउंसिलिंग कर परिवार नियोजन के स्थायी साधन नसबंदी को अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्हें यह समझाने की हरसम्भव कोशिश की कि महिला नसबंदी की अपेक्षा पुरुष नसबंदी ज्यादा सरल और सुरक्षित है। जो लोग यह कहते हैं कि नसबंदी से पुरुषों में कमजोरी आती है तो यह सरासर गलत और मनगढंत बातें हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है। अपनी बात को मजबूती से रखकर सुदेश ने एक साल के भीतर 19 पुरुषों को नसबंदी के लिए राजी कर लिया। नवम्बर 2021 में पुरुष नसबंदी पखवाड़ा के दौरान आठ लोगों ने स्वेच्छा से नसबंदी की सेवा प्राप्त की। इसके अलावा नवम्बर से अब तक सुदेश 11 और पुरुषों की नसबंदी करा चुकी हैं। इसी माह जून 2022 में भी उन्होंने दो पुरुषों की नसबंदी करवायी है। सुदेश का कहना है कि अब परिवार नियोजन को लेकर लोग उनकी बात ध्यान से सुनते हैं और मानते हैं।  
परिवार नियोजन के फायदे बताकर किया राजी
 सुदेश का कहना है- अक्सर समाज में फैली भ्रांतियों के चलते पुरुष नसबंदी करवाने से कतराते हैं और ठान लेते हैं कि नसबंदी नहीं कराएंगे। इसी वजह से वह प्रयास तो दूर नसबंदी के बारे में सोचते भी नहीं है। झिझक को छोड़कर जब गांव के लोगों की भ्रांतियों को दूर करते हुए बातचीत का सिलसिला शुरू किया और फायदे गिनाये तो वह नसबंदी को राजी होने लगे। यह सिलसिला शुरू हुआ तो एक-एक करके 19 लोगों ने स्वेच्छा से नसबंदी की सेवा अपनाई। उन्होंने बताया - आठ लोगों ने परिवार नियोजन का यह स्थाई साधन पुरुष नसबंदी पखवाड़े के दौरान अपनाया, बाकी लोग इसका महत्व समझकर आगे आते रहे। सुदेश कहती हैं वह परिवार नियोजन का महत्व समझाती गयीं और लोग समझते गये, परिणाम सामने है। 
 परिवार नियोजन का स्थायी साधन अपनाने वाले नीटू ने बताया- उनकी उम्र 29 वर्ष है। परिवार में पत्नी पूजा और तीन बच्चे हैं। महंगाई के इस दौर में मजदूरी करके तीन बच्चों का भरण-पोषण बहुत मुश्किल है। नीटू ने बताया- आशा कार्यकर्ता सुदेश ने जब उन्हें छोटे परिवार के बड़े फायदे गिनाये तो वह शुरू में तो झिझक की वजह से आनाकानी करने लगे, लेकिन पत्नी के समझाने पर नसबंदी कराने के लिए राजी हो गए।
 नरेश ने बताया-उनके परिवार में पत्नी सुरेशवती और दो बेटी और दो बेटे हैं। नसबंदी कराने का फैसला पति-पत्नी ने सुदेश के कहने पर लिया। उन्हें बताया गया कि महिला नसबंदी कराती है तो घरेलू कामकाज के चलते कई बार उसे आराम नहीं मिल पाता है। परिवार नियोजन की जिम्मेदारी पति-पत्नी दोनों की है। सुदेश की बातें मानकर नरेश ने नसबंदी कराई। अब वह अपने परिवार में पूरी तरह से खुश हैं और इसका श्रेय सुदेश को देते हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन किया।
इसी तरह नसबंदी अपनाने वाले श्रवण ने बताया -उनकी पत्नी सरिता सुन और बोल नहीं सकती है। आशा कार्यकर्ता ने जब उन्हें परिवार नियोजन के फायदे बताए और यह भी बताया कि उनकी पत्नी नसबंदी कराएगी तो वह अपनी परेशानी बोलकर बता भी नहीं पाएगी। पत्नी की परेशानी को समझते हुए श्रवण ने नसबंदी कराने का फैसला किया।
 धर्मेंद्र ने बताया- छोटा परिवार सुखी परिवार होता है। यह बात आशा के बताने पर समझ आ गयी। उनके परिवार में पत्नी अंजू और दो बच्चे हैं। आशा के मार्गदर्शन के बाद नसबंदी कराने का फैसला पति-पत्नी ने लिया और हम अपने छोटे परिवार के साथ बेहद खुश हैं।

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