असुरक्षित गर्भपात : मातृत्व स्वास्थ्य और जान को जोखिम

 

गाजियाबाद, 28  जून 2022 असुरक्षित गर्भपात मातृ स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है। वैसे तो अनचाहे गर्भ से बचने के लिए परिवार नियोजन के तमाम अस्थाई साधन उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी यदि किन्हीं कारणों से अनचाहा गर्भ ठहर भी जाता है तो सुरक्षित गर्भपात कराएं। स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ अथवा एमबीबीएस चिकित्सक ही गर्भपात के लिए अधिकृत हैं। महिलाओं और किशोरियों में असुरक्षित गर्भपात के जोखिम को ध्यान में रखते हुएमेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी (संशोधित) एक्ट, 2021 को समझने की ज़रूरत हैजिनमें समाज और धार्मिक नेता भी शामिल हैं ताकि महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से बचाया जा सके। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में हर वर्ष कुल गर्भधारण में लगभग आधे गर्भधारण अनचाहे होते हैं। इनमें 10 में से छह अनचाहे गर्भधारण और सभी 10 में से तीन गर्भधारण गर्भपात में समाप्त होते हैं। डब्ल्यूएचओ का  मानना है कि गर्भपात तभी  सुरक्षित हो सकता है जब वह प्रशिक्षित डॉक्टर की मदद से सही तरीके और सही समय पर कराया  जाए। अगर गर्भपात सुरक्षित न हो तो ऐसी स्थिति में यह शारीरिकमानसिक विकार के साथ महिला या किशोरी की मौत का कारण भी बन सकता है। असुरक्षित गर्भपात से होने वाली कुल मौतों में 97 प्रतिशत मौत विकासशील देशों में होती हैं। विकसित देशों में  जहाँ एक लाख पर 30 महिलाओं की मृत्यु होती  है वहीं विकासशील देशों में 220 महिलाओं की जान चली जाती है। विकासशील देशों में करीब 70 लाख महिलाएं हर साल असुरक्षित गर्भपात के कारण अस्पतालों में भर्ती होती हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसारअसुरक्षित गर्भपात भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा प्रमुख कारण है और असुरक्षित गर्भपात से संबंधित कारणों से हर दिन करीब आठ  महिलाओं की मौत हो जाती है। 

डॉ. संगीता गोयल का कहना है असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मातृ मृत्यु को कम करने एवं गर्भपात सेवाओं को  बेहतर बनाने और गुणवत्तापूर्ण पहुँच बनाने के उद्देश्य से देश में वर्ष 1971 में चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट या एमटीपी एक्ट) लागू किया गया। यह अधिनियम सुरक्षित गर्भपात सेवा के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता हैजिससे असुरक्षित गर्भपात को कम किया जा सके। पहले इस अधिनियम के अनुसार भारत में विशेष परिस्थितियों में 20 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात कराना वैध था लेकिन अब संशोधित अधिनियम (2021) के अनुसार 24 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात कराना वैध है। 

डॉ. संगीता गोयल के अनुसार 20 वर्ष से कम आयु में गर्भधारण करना किशोरावस्था में गर्भ धारण (टीन एज प्रेग्नेंसी) कहलाता है।  राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5  (2019-21) के अनुसार  15 से 19 वर्ष की लगभग तीन  प्रतिशत महिलायें सर्वे के समय या तो गर्भवती थीं  या माँ बन चुकी थीं। गाजियाबाद जनपद की बात करें तो सर्वे के मुताबिक जिले में उक्त आयु वर्ग की 0.6 प्रतिशत महिला गर्भवती थीं या मां बन चुकी थीं। राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य केंद्रों पर एडोल्सेन्ट फ्रेंडली क्लिनिक संचालित हैं वहाँ पर काउंसलर इस समस्या का समाधान करते हैं तथा सभी बातें गोपनीय रखी जाती हैं। 

किन परिस्थितियों में  गर्भपात करा सकती हैं ?

• यदि गर्भ को रखने से महिला के जीवन को खतरा है या उसके कारण महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गहरी चोट पहुँच सकती है। 

• अगर पैदा होने वाले बच्चे को शारीरिक या मानसिक असमानताएं होने की सम्भावना है। 

• अनचाहा गर्भ होने पर और  गर्भनिरोधक विधि की असफलता के कारण गर्भपात कराया जा सकता हैं।

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