देश लिख रहा नया अध्याय

यकीनन इस समय भारत का पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और कारोबारी संबंधों का नया परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। अब भारत के द्वारा एक्ट ईस्ट की नीति के तहत व्यापार का नया अध्याय लिखा जा रहा है। विगत 16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा की और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने, शिक्षा क्षेत्र में सहयोग एवं पनबिजली क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर छह समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। मोदी के इस दौरे से जहां भारत और नेपाल के बीच 1950 की द्विपक्षीय संधि की नींव को मजबूती मिली है, वहीं चीन के लिए एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश है कि नेपाल में चीन के कुछ निवेश से भारत-नेपाल रिश्तों को कमजोर नहीं किया जा सकता है।  नेपाल की तरह श्रीलंका से भी भारत के अच्छे आर्थिक संबंधों का नया परिदृश्य निर्मित हुआ है। गौरतलब है कि विगत 12 मई को रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत के साथ तेजी से आर्थिक सहयोग बढ़ाने के संकेत दिए हैं। ज्ञातव्य है कि इसके पहले महिंदा राजपक्षे की सरकार की नीति चीन के लिए अधिक समर्थन की रही है। इस समय जब श्रीलंका आर्थिक रूप से बदहाल हो गया है, तब भारत ने मार्च-अप्रैल 2022 में श्रीलंका को कर्ज डिफाल्ट से बचने के लिए 2.4 अरब डॉलर की मदद, दवाओं, डीजल की आपूर्ति तथा अन्य जरूरी आयात के लिए एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन जैसी मदद भी की है। इन सबके साथ-साथ 19 मई को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने श्रीलंका के साथ रुपए में व्यापार लेन-देन की अनुमति भी दी है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि विगत 12 मई को पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की नई सरकार के द्वारा नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में कमर जयां को पाकिस्तान का व्यापार प्रतिनिधि बनाया गया है। जहां एक ओर पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर भारत में पाकिस्तान के व्यापार प्रतिनिधि की नियुक्ति की तीखी आलोचना हुई है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोगों ने आर्थिक वित्तीय मुश्किलों में भारत के साथ नए व्यापार रिश्तों के लिए पाकिस्तानी कैबिनेट के इस फैसले की जोरदार वकालत भी की है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान भारत के साथ व्यापार पाकिस्तान के आम आदमी से लेकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद है। इस समय खस्ताहाल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। जहां पाकिस्तान के आंतरिक वित्तीय राजस्व में कमी आ रही है, वहीं बाहरी वित्तीय मदद का संकट भी उभरकर दिखाई दे रहा है। ज्ञातव्य है कि 2019 के अंत में जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान ने भारत के साथ सभी व्यापार संबंध समाप्त कर दिए थे। इसमें कोई दोमत नहीं है कि पाकिस्तान के आतंकी रवैये के कारण दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देश संगठित रूप से आपसी कारोबार को आगे नहीं बढ़ा पाए हैं। स्थिति यह है कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के तहत पाकिस्तान भारत विरोधी रवैये और लगातार आतंकवाद को प्रोत्साहन देने के कारण सार्क के तहत पड़ोसी देशों की कारोबार संबंधी निराशाओं का परिदृश्य बना हुआ है। यद्यपि सार्क 1985 में अस्तित्व में आया है और 1994 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) के समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। साफ्टा समझौता जनवरी 2006 से लागू हुआ। लेकिन साफ्टा विश्व का कमजोर मुक्त व्यापार संगठन बना हुआ है और महत्त्वहीन हो गया है। अब पाकिस्तान में शरीफ सरकार आने के बाद भी जहां पाकिस्तान के भारत के साथ कारोबार की संभावनाओं, परिदृश्य पर चुनौतियां बनी हुई हैं, वहीं सार्क संगठन और साफ्टा के सामने भी चुनौतियां बनी हुई हैं।

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