स्वत्व का बोध कराने वाला है आचार्यः प्रो.जगमोहन सिंह

अंतर विवि अध्यापक शिक्षा केन्द की राष्ट्रीय संगोष्ठी

वाराणसी। अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र (आईयूसीटीई), सुन्दर बगिया परिसर, बीएचयू में आयोजित ’’आचार्यत्व’’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में शिक्षाविदों ने अपने वितार व्यक्त किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन तथा मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और मंगलाचरण के साथ प्रारम्भ हुआ। संस्था के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि आचारात् आचार्य अर्थात जो आचार का आचरण करता है वह
आचार्य है। निर्विकार चिन्तन, निर्दोष स्वभाव, निष्पाप जीवन-ये आचार्य के अविभाज्य अंग हैं, जो इन पर आचरण करता है तथा अपने शिष्यों को आचरण करने के लिए प्रेरित करता है वही आचार्य है।
विशिष्ट अतिथि, पद्म भूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य एक वृत्ति, प्रकृति एवं संकल्प है। सदाचार का प्रशिक्षण एवं अनुदेशन करने वाला ही आचार्य है। अध्यक्ष, पद्मश्री प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत, अध्यक्ष, गवर्निंग बोर्ड, आईयूसीटीई बीएचयू ने कहा कि अपने स्वत्व के बोध को जागृत करने वाला आचार्य है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि, डा. कृष्ण गोपाल, सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने संगोष्ठी का बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि- अंतः पट को खोलने वाला वाला आचार्य है। उन्होंने स्वत्व, शिक्षा, धर्म, विचार और दर्शन के विविध पक्षों  को प्रकाशित करते हुए वर्तमान में शिक्षा जगत में अर्थ के बढ़ते प्रभाव के साथ ही विद्या की विक्री पर चिन्ता व्यक्त किया। कहा कि हमें लौकिक शिक्षा के साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि विकसित करने की नितान्त आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन डा. पारोमिता चौबे एवं मंगलाचरण डा. नित्यानन्द उपाध्याय ने किया। इस मौके पर प्रो. हरिश्चन्द्र सिंह राठौर, प्रो.राजाराम शुक्ल, प्रो. सुनील सिंह, प्रो. हरिकेश सिंह, डॉ. गोरख नाथ तिवारी,  अमरजीत सिंह, अभिनेष सिंह, डा. हिमांशु त्रिपाठी, डा.
अवधेश कुमार मिश्र, डा. ऋचा सिंह, डा. तिलोत्तमा सिंह, अनिल राय, के. अजय कुमार, संजीव कुमार श्रीवास्तव समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

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