असमानता का बढ़ता दायरा

समानता से आशय है समान अवसर, समान अधिकार और समान महत्व। समानता व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या अन्य प्रकार की हो सकती है। और इन तत्त्वों में जब भिन्नता हो तो वह असमानता बन जाती है। जैसे जातीय असमानता, लैंगिक असमानता, अमीर-गरीब, मजदूर -अफसर इत्यादि। गौरतलब है कि हमारे देश में, हमारे समाज में विभिन्न तरह की असमानताएं आज भी कायम हैं। हालांकि संविधान में सबको समानता का अवसर दिया गया है। इसमें दो राय नहीं कि देश असमानता के खिलाफ जंग में कुछ जीत चुका है, लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आज भी असमानता के अवशेष हमारी मानसिकता में भरे पड़े हैं। प्रमुख बात यह है कि आर्थिक असमानता ही अन्य असमानताओं की प्रमुख वजह बनती है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक रूप से कमजोर होकर पिछड़ेपन का शिकार बनता है। आर्थिक असमानता की वजह से आम लोगों के जीवनस्तर में कमी के साथ ही कई और समस्याएं भी जन्म लेती है जैसे तेजी से बढ़ती आर्थिक असमानता बड़े पैमाने पर कुंठा को जन्म देती है। समाज के आर्थिक रूप से निचले स्तर पर आजीविका के लिए संघर्षरत किसी व्यक्ति के लिए नैतिकता और ईमानदारी अपना मूल्य खो देती है। यानि इससे सामाजिक असमानता भी जन्म लेती है जो टकराव का कारण बनती है।

आज के वैश्वीकरण के दौर में विकास के पैमाने का यह एक काला सच है कि अधिकांश आर्थिक लाभ वैश्विक अभिजात वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया है। हम देखते हैं कि पूरी दुनिया में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है तो साथ में गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है। इसके क्या कारण है इस पर विमर्श किया जा सकता है, लेकिन इस फासले को मिटाने के लिए अमीर व्यक्तियों द्वारा कर के उचित हिस्से का भुगतान किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए और असमानता को कम करने के लिए सरकारों को शिक्षा, सेवा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में निवेश करके पुनर्वितरण के लिए कराधान और खर्च का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए श्रमिक संगठनों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। श्रमिकों के प्रति आर्थिक भेदभाव उनके उत्थान में बहुत बड़ी बाधा है। कुल मिलाकर हमें सोच के दायरे को बदलना होगा। जिस दिन सोच बदल जाएगी उस दिन समाज बदल जाएगा। मूल बात यही है कि इन सब असमानताओं को दूर करने लिए हमें अपने दिमाग को सही दिशा में रखना होगा। व्यापक स्तर पर असमानता के सभी पहलुओं पर विमर्श किया जाना चाहिए। इसके उन्मूलन के प्रयास पाठयक्रम के माध्यम से होने चाहिए। जब तक मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा तब तक कहीं न कहीं ऊंच नींच का भाव दिमाग में भरा रहेगा। 

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