मौसम-महंगाई और गरीब

देश में गर्मी और मुद्रास्फीति दर, दोनों बढ़ती चली जा रही हैं। इससे गरीब और मध्य वर्ग सर्वाधिक परेशान है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति में वर्ष 2014 के बाद अभूतपूर्व वृद्धि होकर यह अप्रैल माह में 7.79 फीसदी हो गई। इसी तरह, मौसम विभाग के मुताबिक पिछले महीने भारत का मासिक और प्रतिदिन का उच्चतम तापमान बढ़कर क्रमशः 31.35 और 35.30 डिग्री सेंटीग्रेड हो गया। गरीबों पर यह दोहरी और भयावह मार है, जो उनको और कमजोर कर देगी। हो सकता है शायद प्रकृति तो फिर भी रहम खाकर दक्षिण-पश्चिम मानसून के जरिए गरीबों को गर्मी के कहर से कुछ राहत दे पाए, किंतु मुद्रास्फीति के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। गरीब तबके के लिए आम वस्तुओं की कीमतें और मुद्रास्फीति ऊपर उठना रोजाना का नया चलन हो गया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर आंकी गई खुदरा और थोक मुद्रास्फीति में पिछले कुछ महीनों से लगातार बढ़ोतरी हुई है। इस साल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जनवरी में (6.01), फरवरी में (6.07), मार्च में (6.95) तो अप्रैल में 7.79 फीसदी जा पहुंचा। वहीं, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक जोकि जनवरी में 13.68 फीसदी था, वह मार्च माह में 14.5 प्रतिशत हो गया। हालांकि पिछले कुछ समय से रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक मुद्रस्फीति में और इजाफा किया है लेकिन भारत में बढ़ते ईंधन और खाद्य मूल्यों से बनी मुद्रा स्फीति पहले से चली आ रही है और कीमतें स्थिर करने के लिए किए गए सरकारी प्रयास बेनतीजा रहे। अमीर तबका तो खाद्य वस्तुओं में अचानक मूल्य बढ़ोतरी को झेल लेता है लेकिन गरीब नहीं कर पाता। इससे कुपोषण बढ़ने की आशंका है और इसकी अपूरणीय क्षति सबसे ज्यादा बच्चों के स्वास्थ्य को होगी’। भारत के लगभग 50 करोड़ लोग ग्रामीण इलाके में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबके से और शहरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले गरीब हैं, बढ़ती मुद्रास्फीति दर उन्हें और आगे अत्यंत गरीबी में धंसा देगी। घटती दिहाड़ी, कोविड-19 महामारी, ऊंची ग्रामीण बेरोजगारी दर, आय असमानता और उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का दूरगामी विपरीत असर भारत में गरीबी उन्मूलन प्रयासों पर पड़ेगा। गरीब, जो अभी भी कोविड-19 के मारक असर से उबरने की प्रक्रिया में हैं, ऐसे में उन पर मुद्रास्फीति का और प्रतिकूल प्रभाव होगा। इसलिए खाद्य एवं ईंधन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने, ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने, आय असमानता घटाने, गरीब की सहायता , आवश्यक वस्तुओं के सार्वजनिक वितरण को सुदृढ़ करने और औसत दिहाड़ी मजदूरी बढ़ाने के लिए संवेदनशील सरकारी दखलअंदाजी जरूरी है।

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