गोमती  रिवर  फ्रंट  घोटाला मामला
 हाईकोर्ट ने खारिज की जमानत याचिका
लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने गोमती रिवर फ़्रंट घोटाले के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
याचिका पर दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा कि मामला 1500/- करोड़ रुपये के एक बड़े घोटाले से संबंधित है। प्रासंगिक अवधि के दौरान, आवेदक विभाग के कनिष्ठ सहायक / लिपिक थे और प्रथम दृष्टया यह पाया जाता है कि वह भी भ्रष्टाचार की श्रृंखला का हिस्सा और पार्सल था, जिससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ था।
वर्तमान मामले में सीबीआई द्वारा यूपी सरकार के आदेश दिनांक 17.07.2017 के आधार पर “गोमती रिवर चैनलाइजेशन प्रोजेक्ट” और “गोमती रिवर फ्रंट” के कार्य में आपराधिक मंशा से की गई वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
राज्य सरकार ने 2017 के केस क्राइम नंबर 831 में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ धारा 409, 420, 467, 468, 471, 34 आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसी एक्ट) की धारा 7 और 13 में सीबीआई द्वारा आगे की जांच के लिए कहा।
यह भी आरोप लगाया गया है कि अंबुज द्विवेदी की लिखित शिकायत पर स्थानीय पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गई। बाद में  न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग को जांच करने का आदेश दिया गया। जांच आयोग अधिनियम के तहत 16.5.2017 को राज्य सरकार को एक व्यापक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, जिसके कारण वर्तमान प्राथमिकी दर्ज की गई है।
अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता नंदित श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया कि आवेदक श्रृंखला में सबसे कनिष्ठ कर्मचारी है और उसने उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन किया है। वह सिंचाई विभाग में केवल कनिष्ठ सहायक / लिपिक थे। उन्हें 19 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। अभी तक मामले में संज्ञान नहीं लिया गया है।
सीबीआई के वकील अनुराग कुमार सिंह ने आवेदक की जमानत प्रार्थना का विरोध किया।
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, अपराध की प्रकृति, भारी राशि का गबन, अभियुक्तों की मिलीभगत के साथ-साथ पक्षकारों के विद्वान वकील द्वारा प्रतिद्वंदी प्रस्तुतियाँ और मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, न्यायालय ने जमानत याचिका खारिज कर दी।


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