वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा


यूक्रेन और रूस में छिड़े युद्ध पर अभी रोक नहीं लग पा रही है। यूक्रैन पर हो रहे रूसी आक्रमण से विश्व खाद्य बाजार को पुनः उथल-पुथल का सामना करना पड़ सकता है, जिससे दुनियाभर की खाद्य सुरक्षा पर संकट मंडराने की स्थिति बनेगी। हाल ही में ब्लूम्बर्ग मीडिया हाउस से बातचीत में विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक, डेविड बीस्ली ने स्वीकार किया है ‘यूक्रेन में चलने वाली गोलियां और बम विश्व भूख सूचकांक में इस स्तर का संकट पैदा कर सकते हैं, जो इससे पहले हमने कभी देखा न हो’। वर्ष 2007-08 में छाए वैश्विक खाद्य संकट की वजह से वस्तुओं की निरंतर बढ़ती कीमतें नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। इसके कारकों की कड़ी में- बढ़ता तेल मूल्य, उपज का एक बड़ा हिस्सा बायो-ईंधन उत्पादन में और वस्तुओं के ऊंचे वायदा मूल्य- जो सब आपस में जुड़े रहते हैं, इनकी वजह से न केवल वैश्विक खाद्य आपूर्ति में कमी हुई थी बल्कि 37 देशों में भोजन को लेकर दंगे तक हुए थे। इस स्थिति की पुनरावृत्ति न होने पाए, यह सुनिश्चित करने वाले निदान-उपाय करने के बावजूद युद्ध से पहले वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती हैं। वर्ष 2021 में खाद्य मूल्यों ने पिछले सभी रिकॉर्ड भंग कर दिए।  इस बात के मद्देनजर कि जहां अन्य कारक एक फिर मजबूत होकर उभर रहे हैं, तिस पर काला सागर क्षेत्र में चले हुए युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला टूट गई है। यहीं से विश्वभर की जरूरत का 30 प्रतिशत गेहूं, 28 फीसदी जौ, 18 प्रतिशत मक्का और 75 फीसदी सूरजमुखी तेल मिलता है, संसार के सामने एक बार फिर से गंभीर खाद्य संकट बनने लगा है। मुश्किल की तीव्रता कितनी रहेगी, यह समय बताएगा।  खाद्यान्न को लेकर इराक और श्रीलंका में प्रदर्शन हो रहे हैं, इस बीच बहुत से देशों ने अपनी घरेलू खाद्य आपूर्ति सुरक्षित बनाए रखने की खातिर संरक्षणवादी उपाय अपना लिए हैं। मौजूदा हालात के परिणामस्वरूप खाद्य संकट मंडराएगा, और ज्यादा लोग भुखमरी का सामना करेंगे। खाद्य वस्तुओं की कीमतें पहले ही ऊपर उठने और सुपर-मार्केटों की शेल्फों से सामान घटने से खाद्य सुरक्षा लगातार संकट में पड़ती जा रही है। रूस पर अमेरिका द्वारा लगाए प्रतिबंधों के कारण, खाद की कीमतें भी बढ़ी हैं। रूस दुनिया में नाइट्रोजन खाद का सबसे बड़ा निर्यातक तो है ही, फास्फोरस और पोटाश युक्त खाद उत्पादन में भी इस इलाके का दबदबा है। इससे भारत समेत बहुत से देशों में किसान की उत्पादन लागत में इजाफा होने का आशंका है। आगामी फसलों की बुवाई प्रभावित होगी, अतएव खाद्य उपलब्धता पर असर पड़ेगा। महत्वपूर्ण है कि न केवल खाद्यान्न की कमी से बल्कि इनको खरीदने की क्षमता से तय होगा कि संकट किस कदर गहरा होगा। भोजन को लेकर अफ्रीका महाद्वीप में मिस्र, मेडागस्कर, मोरक्को, ट्यूनीशिया, यमन और एशिया में पड़ते लेबनान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तुर्की, ईरान और इराक सबसे कमजोर मुल्कों में आते हैं क्योंकि इनकी खाद्यान्न आपूर्ति युद्ध-ग्रस्त क्षेत्र पर निर्भर है। यूरोपियन यूनियन में पशुओं के चारे की बढ़ती कीमतों ने पशुपालन उद्योग को प्रभावित किया है, इससे मीट का मूल्य बढ़ गया है। यदि यूक्रेन युद्ध जरा भी लंबा खिंचा तो बढ़ती खाद्य कीमतों का असर बिना शक सभी देशों को प्रभावित करेगा। लड़ाई से पहले भी गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई छू गई थीं। तथ्य है कि जिन वस्तुओं का व्यापार ज्यादा होता है, पिछले कुछ सालों से उनका मूल्य बढ़ता चला गया है। विश्व खाद्य संगठन के दो अनुमानों के अनुसार, पहले से ऊंचाई छू गए इन मूल्यों में और 22 प्रतिशत वृद्धि होने की आशंका है, इससे वर्ष 2022-23 में कुपोषितों की संख्या में आगे 80 लाख से 1.3 करोड़ लोगों का इजाफा हो सकता है। भूख और कुपोषण का प्रकोप अधिकांशतः एशिया-प्रशांत, उप-सहारा अफ्रीका और मध्य-पूर्व एशिया के क्षेत्र में बढ़ेगा।  इधर भारत में खाद्यान्न निर्यातक आपूर्ति में बने फर्क को भरने के लिए तैयारी कर रहे हैं, आईटीसी कंपनी को उम्मीद है कि आने वाले सालों में गेहूं का निर्यात बढ़कर लगभग 2.1 करोड़ टन छू लेगा। विश्व किसी भी सूरत में अन्य खाद्य संकट की ओर बढ़ रहा है। तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और मुद्रा स्फीति में भी तेज बढ़ोतरी जारी है, खाद्य मूल्य पहले ही बहुत ऊपर हैं, पिछले 40 सालों में सबसे अधिक और बायो-ईंधन– जो फसल से बनता है– उसके उत्पादन में इजाफा हो रहा है। खाद्यान्न पाने के लिए जो वैश्विक आपाधापी आज हम देख रहे हैं वह मुख्यतः इसलिए है कि क्योंकि मुल्कों को सिखाया गया कि वे अपनी खाद्य-आत्मनिर्भरता बनाने से दूर रहें। इस विपत्ति से सबक लेते हुए, अपनी निर्भरता बाहरी मंडियों पर घटाने और कृषि को व्यवहार्य बनाने की फौरी जरूरत है। 


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