बुजुर्गों की अनदेखी

हमारा देश इस समय बेशक युवाओं का भारत कहा जा रहा है लेकिन इस समय प्रत्येक 12वां व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक है। इस समय वरिष्ठ नागरिकों की आबादी करीब 15 करोड़ है और निकट भविष्य में इसमें तेजी आएगी। ऐसी स्थिति में इस श्रेणी में आने वाली आबादी के लिए बेहतर सुविधाओं की आवश्यकता है। अफसोस इस बात का है कि बुजुर्ग और वृद्ध माता-पिता का हमेशा सम्मान करने के लिए प्रसिद्ध हमारे देश में ही अब बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा हो रही है। उनका परित्याग कर उन्हें वृद्धाश्रम तक पहुंचा दिया जा रहा है। जबकि वरिष्ठ नागरिकों को जिंदगी के इस पड़ाव में भी संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। वरिष्ठ नागरिकों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के मामले में देश की न्यायपालिका भी हस्तक्षेप कर चुकी है। उसने इस वर्ग के लोगों के लिए विशेष योजना तैयार करने और पहले से मौजूद वृद्धावस्था नीति का सख्ती से पालन करने के निर्देश भी दे रखे हैं। वैसे जरूरतों के हिसाब से देश में वृद्धावस्था नीति भी बनाई गई है परंतु इस पर पूरी गंभीरता से अमल नहीं हो रहा है। नतीजा 60 साल की उम्र का पड़ाव लांघ चुके अनेक वरिष्ठ नागरिकों को आये-दिन तरह-तरह से अपमानित और उपेक्षित होने का अनुभव होता है।
वरिष्ठ नागरिकों की इस श्रेणी में आने वाली आबादी के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और सुगम आवागमन की सुविधाएं होनी चाहिए। लेकिन अचानक ही ऐसा हुआ है कि कोविड-19 महामारी के दौरान वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेल यात्रा में मिलने वाली रियायत वापस लेने के बाद अब सरकार इसे बहाल करने में ना-नुकुर कर रही है। अब बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों को अपने पैतृक नगर या तीर्थस्थलों और पर्यटक स्थलों पर जाने के लिए रेल यात्रा पर भारी -भरकम राशि खर्च करनी होगी। वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य से संबंधित चिकित्सीय परामर्श के लिए अक्सर काफी लंबा इंतजार करना पड़ता है। हमारे सामाजिक मूल्यों में तेजी से आ रहे बदलाव की वजह से भी वरिष्ठ नागरिकों को तरह-तरह की समस्याओं से रूबरू होना पड़ रहा है। परिवारों में भी बुजुर्गों को संतान की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। इसकी एक वजह बुजुर्गों द्वारा अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति भी है जिसे सुरक्षित रखना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है। सरकार ने वृद्ध माता-पिता और परिवार के दूसरे बुजुर्ग सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार, उपेक्षा और उनकी संपत्ति हड़पने के लिए घर में ही उन्हें प्रताड़ित करने और उनका परित्याग करने जैसी घटनाओं में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए 2007 में ‘माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून’ बनाया और बुजुर्गों के हितों की रक्षा के मामले में न्यायपालिका ने भी सख्त रुख अपनाया है। ऐसा लगता है कि महानगरों और ऐसे ही प्रमुख शहरों से इतर देश के दूरदराज के इलाकों में बुजुर्गों को इस कानून की ज्यादा जानकारी नहीं है। केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों को चाहिए कि बड़े स्तर पर इस कानून के प्रति जागरूकता पैदा करने का अभियान चलाएं ताकि संपत्ति के लालच में संतानें बुजुर्गों की जिंदगी नरक नहीं बनायें। सामाजिक कल्याण मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिकों की मदद के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर भी शुरू कर रखा है। लेकिन इनके बारे में जानकारी के प्रचार-प्रसार के अभाव में मदद की दरकार करने वाले पीड़ित बुजुर्ग के लिए अपनी समस्याओं से अधिकारियों को अवगत कराना भी चुनौती बन जाता है। न्यायालय ने भी स्थिति की गंभीरता और महत्व को देखते हुए दिसंबर, 2018 में केंद्र को व्यापक निर्देश दिये थे। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार को व्यापक अर्थ दिये जाने की आवश्यकता है ताकि देश के वरिष्ठ नागरिक गरिमा और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए केंद्र और राज्य सरकारें देश के करीब 15 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों में से बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन गुजार रहे बुजुर्गों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देगी और उनकी सुविधाओं में कटौती की बजाय इनमें सुधार करेगी।

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