‘बुल्ली बाई’ एप साइबर क्राइम की दुनिया की नई इबारत के रूप में सामने आया है। तकनीकि दुनिया जहां तरक्की की राह दिखाती है, वहीं अपराधियों के घातक मंसूबों को अंजाम देने का साधन भी बन गई है। दरअसल, साइबर अपराधियों के खिलाफ समय रहते सख्त कार्रवाई न होने से ऐसे तत्वों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि वर्ग विशेष की मौन सहमति उन्हें प्राप्त है। ऐसे हमले समुदाय या लिंग विशेष पर न होकर पूरी सामाजिकता के ताने-बाने को क्षतिग्रस्त करते हैं। हाल ही में सामने आया ‘बुल्ली बाई’ एप का मामला इसी कड़ी का विस्तार है, जिसमें सोशल मीडिया पर सक्रिय संप्रदाय विशेष की महिलाओं की प्रतिष्ठा व गरिमा को ठेस पहुंचाने की कुत्सित कोशिश की गई। हालांकि, सरकार ने इस विवादित एप पर रोक लगाई और विद्वेष फैलाने वाले समूह की मास्टर माइंड महिला व एक इंजीनियरिंग के छात्र को गिरफ्तार करके ऐसे तत्वों को सख्त संदेश भी दिया है। लेकिन इससे समाज में जो कटुता व विद्वेष फैला है, उसकी क्षतिपूर्ति इतनी आसान भी नहीं होगी। दरअसल, इस विवादित एप पर संप्रदाय विशेष की महिलाओं के चित्र अपलोड करके उनके बारे में अनुचित व अश्लील बातें लिखी गई थीं। इससे पहले गत वर्ष जुलाई में ऐसे ही विवादित एप का मामला संप्रदाय विशेष की महिलाओं को निशाने पर लेने के आरोपों के बीच सामने आया था, लेकिन दिल्ली व यूपी में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से उससे मिलते-जुलते नये एप का मामला प्रकाश में आ गया। भले ही पुलिस ने मुख्य अपराधियों को पकड़ लिया है, लेकिन साइबर अपराधों से निपटने के लिये सख्त तंत्र विकसित करने की जरूरत है, अन्यथा ऐसी कुत्सित कोशिशों का समाज को बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ेगा जो कालांतर कानून व्यवस्था के लिये चुनौती पैदा कर सकता है। अब वक्त आ गया है कि समाज में नफरत फैलाने वाले साइबर अपराधियों पर मजबूती से शिकंजा कसा जाये। अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने के लिये यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसे अपराधियों पर समय रहते निर्णायक कार्रवाई की जाये, जिसके लिये तंत्र की प्रतिबद्धता जरूरी है। दरअसल, दुनिया भर में साइबर स्पेस तेजी से यौन विकृतियों, आर्थिक अपराधियों तथा महिलाओं को निशाने पर लेने वाले ट्रोलर्स का अड्डा बनता जा रहा है। भारत भी उसका अपवाद नहीं है। वर्ष 2020 में देश में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के लगभग 2300 मामले प्रकाश में आये। इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे पीड़ित होते हैं जो कई कारणों से शिकायत दर्ज कराने आगे नहीं आते। वर्ष 2019 में भी 1600 से अधिक ऐसे ही मामले दर्ज हुए। इनमें अधिकतर अपराध यौन सामग्री के प्रकाशन व प्रसारण से जुड़े थे। भयदोहन, मानहानि, फर्जी प्रोफाइल बनाने जैसे हथकंडों से महिलाओं को परेशान व अपमानित करने का कुत्सित खेल खेला जाता है। ऐसे में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के साथ ही कानूनी प्रावधानों को सख्त बनाने की जरूरत है ताकि कानून प्रभावी निवारक के रूप में कार्य कर सके।
समाज में मोबाइल फोन के बढ़ते उपयोग व इंटरनेट के दायरे में विस्तार ने महिलाओं को यौन उत्पीड़न की दृष्टि से संवेदनशील बना दिया है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संकल्पबद्ध होने की जरूरत है ताकि महिलाएं चाहे किसी भी समुदाय से संबंध रखती हों, ऐसे हमलों का शिकार न बनें। 

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