नुकसान किसका... !
शहर के एक पुराने एवं प्रतिष्ठित होटल सान्याल अपने समोसा के लिए पूरे शहर में मशहूर था। होटल के मालिक राघव सान्याल ने इसकी कमाई से शहर में अपना एक आलीशान बंगला भी बनवा लिया था। शहर में कुछ असामाजिक तत्वों की नजर इसकी कमाई पर पड़ने लगी फलस्वरूप आपराधिक प्रवृत्ति के सजीवन होटल सान्याल से स्थानीय टैक्स वसूलने लगे। फिर सजीवन का पुत्र भी इसी प्रकार का टैक्स लेने लगे। समय बीतता गया एवं सजीवन का पौत्र मुरारी, जो कि अभी अभी होश संभाला ही था, ने भी अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए होटल से वसूली करने लगा साथ ही मुफ्त का समोसा स्वयं एवं दोस्तों को खिलाने लगा।
ऐसा भी समय आया जब तीन पीढ़ी के लोग एक ही दिन में अपनी अपनी वसूली करने लगे। धीरे-धीरे होटल सान्याल की स्थिति काफी जर्जर हो गई, परंतु राघव ने अपने होटल का बिजनेस बंद नहीं किया। टैक्स वसूली की इस परंपरा को उनके मित्र हरिमोहन भी देख रहे थे। समय पाकर एक दिन उन्होंने राघव को सलाह दिया- क्यों नहीं तुम इस व्यवसाय को बंद कर अपने पुत्र के पास कोलकाता चले जाते हो। इस व्यवसाय में तो अब तुम्हारी कोई कमाई नहीं रही, आमदनी का सारा हिस्सा तो लोकल टैक्स में भुगतान कर देते हो। राघव सान्याल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- बचपन से अभी तक इसी शहर में अपना समय बीत गया। अब जीवन के इस पड़ाव पर किसी अन्य शहर में जाने की इच्छा नहीं होती। रही बात नुकसान की तो मैं एक बिजनेसमैन हूं नुकसान का धंधा नहीं करूंगा।
इस बुढ़ापे में मन लगाने के लिए होटल पर बैठा रहता हूं, जितनी मेरी लागत लगती है उतना मुझे समोसा बेचकर प्राप्त हो जाता है। बाकी का लोग मुफ्त में समोसा खाया करते हैं। मेरा तो कोई नुकसान नहीं होगा दोस्त, परंतु मैं इस बुढ़ापे में तीन पीढ़ी को मुफ्त में समोसा खिला कर उसकी पीढ़ी को मुफ्तखोरी की आदत डाल कर बड़े ही आराम से बर्बाद कर चुका हूं। वर्तमान की बात छोड़ो, इस परिवार के आने वाले नस्ल को भी दूषित कर चुका हूं। अब बताओ यार नुकसान किसका हुआ। हरिमोहन गंभीर मुद्रा में सोचने लगे - आखिर नुकसान किसका ... !
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- सोनी कुमारी "राज"
जितवारपुर निजामत, श्री हनुमान मंदिर परिसर
समस्तीपुर (बिहार)।
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