सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर की सख्त टिप्पणी
हत्या के मामले में पहली अपील को इस तरह नहीं निपटा सकते
नई दिल्ली (एजेंसी)।पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से एक व्यक्ति को दोषी ठहनाए जाने और उम्रकैद की सजा को बरकरार रखने का आदेश जिस तरीके से पारित किया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को इस पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हत्या के मामले में किसी भी पहली अपील का इस तरह निपटारा नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट का मार्च 2020 के आदेश में अपीलकर्ता की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करने के लिए निष्कर्ष एक पैराग्राफ में चार पंक्तियों में सामान्य शब्दों में दर्ज किया गया था। अपीलकर्ता की आयु 80 वर्ष से अधिक बताई जा रही है। इस आदेश के खिलाफ व्यक्ति की याचिका को अदालत ने अनुमति दे दी।
न्यायाधीश एसके कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने शख्स की ओर से दाखिल की गई हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति दे दी और मामले को हाईकोर्ट के पास वापस विचार के लिए भेज दिया। हाईकोर्ट के समक्ष याचिका आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत अपराध की दोषसिद्धि के खिलाफ दाखिल की गई थी।
पहली अपील को इस तरह नहीं निपटा सकते
पीठ ने कहा कि हत्या के मामले में पहली अपील इस तरह नहीं निपटाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले अपीलकर्ता को आत्मसमर्पण से छूट दी गई थी और उसकी उम्र 80 साल से अधिक बताई गई है। वह हाईकोर्ट की कार्यवाही में जमानत पर है और 22 अप्रैल 2020 के आदेश में निर्धारित शर्तों के अनुसार जमानत पर रहेगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले से निर्धारित शर्तों को इस हद तक संशोधित किया जाएगा कि अपीलकर्ता हर महीने के पहले सोमवार को पूर्वाह्न में स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करेगा। इस व्यक्ति को पहले भिवानी की एक सत्र अदालत ने अक्तूबर 2005 को दोषी करार दिया था। इस आदेश के खिलाफ उसने हाईकोर्ट का रुख किया था।

No comments:
Post a Comment