- डा.ओपी चौधरी

    "प्रकृति इहाँ एकांत बैठि निज रूप सवांरति।
पल-पल पलटति भेस छिनकि छिन- छिन छवि धारति।
विमल-अम्बु-सर-मुकुरन महँ मुख -बिम्ब निहारति
अपनी छवि पै मोहि आप ही तन -मन  वारति "।।
कवि ने बहुत सटीक लिखा है प्रकृति की मनोरम छटा वास्तव में मन मोहिनी होती है। प्रकृति ही ईश्वर है, गांधी जी का यह कथन कितना सार्थक व सटीक है। इसका ज्वलन्त उदाहरण कोरोना महामारी है। प्रकृति के सामने हम सभी बौने हैं। ज्ञान- विज्ञान की सभी विधाएं प्रकृति के समक्ष नत मस्तक हैं।जीवन और संसार का मूल आधार प्रकृति अपने आप में शास्वत, चिर सुन्दर, नैसर्गिकता का एहसास कराने वाली है। प्रकृति का सौंदर्य वास्तव में हृदय से अनुभूति करने वाली अनुपम छटा से परिपूर्ण है। पूरा संसार प्रकृतिमय है उसी से निर्मित है। कूप, बावड़ी, पोखर, नदी-नाले, समुद्र, पहाड़, रेगिस्तान, हरे भरे मैदान, जंगल, जमीन, पानी सभी प्रकृति के ही अंग व रूप हैं।थलचर, जलचर, नभचर सभी इसी प्रकृति की देन हैं। प्रकृति का विभिन्न ऋतुओं में आना और सभी में नित नूतन परिवर्तन करना न केवल हमारे लिए मन को आह्लादित करने वाले दृश्य को उपस्थित करता है, अपितु जीवन को सुखमय,आनंदमय बनाने की भी ललक व प्रेरणा प्रदान करता है।



  पानी और पौधे मिलकर ही मिट्टी को शक्ति व सार्थकता प्रदान करते हैं।दूसरी ओर मिट्टी ही पानी को अवशोषित कर पौधे की परवरिश कर उसे एक नन्हें बीज से एक विशालकाय वृक्ष का रूप प्रदान करती है। पानी,पौध और मिट्टी का अन्योन्याश्रित संबंध है।तीनों का अस्तित्व एक साथ जुड़ा हुआ है।इसी से प्रकृति संरचित है, जो हमें जीवन प्रदान करती है। प्रकृति संरक्षण की दिशा में वर्षों से कार्यरत पीपल नीम तुलसी अभियान के संस्थापक डॉ. धर्मेन्द्र कुमार का कहना है कि वृक्ष ही धरा के गहना है, इनका रोपण, पोषण, सुरक्षा हम सभी का नैतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक दायित्व भी है। स्वच्छ पर्यावरण हमारा अधिकार है, तो उसके साथ वृक्षारोपण कर पानी बचाना, मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाना हमारा दायित्व भी है।"
पानी जीवन का आधार, यह एक मुख्य घटक है। पेड़-पौधों,वनस्पतियों से वाष्पीकृत जल ही मेघ के रूप में परिवर्तित होकर बरसता है और धरती माँ की प्यास बुझाता है, करोड़ों जीवों की क्षुधा शांत करता है। इसी जल चक्र से प्रकृति का प्रबंधन सुचारू रूप से चलता है। भीषण गर्मी में अधिकांश कूप, हैंडपम्प, नलकूप, तालाब, नाले, यहां तक की छोटी - छोटी नदियों में पानी सूख जाता है, तो सरकार को टैंकर से पानी की आपूर्ति करनी पड़ती है।कहीं ट्रेन से भी पानी पहुंचाया जाता है। दूसरी ओर लोग सड़कों को भिगोकर धूल से निजात पाने के जुगाड़ में लगे रहते हैं।
इसके लिए जन मानस को जागृत करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।औद्योगिकीकरण, आधुनिकीकरण व भौतिकवादी सोच की अंधी दौड़ ने हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। क्षणिक लाभ के लिए हम प्रकृति के महत्व को भूल गए हैं। प्राकृतिक संपदा पेड़, पानी और पौधे सभी कुछ प्रकृति ने हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए निर्मित किये हैं। गाँधी जी कहते थे कि प्रकृति हमारी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है,लेकिन हमारी लालच को नहीं पूरा कर सकती है।
  पेड़ -पौधे,पानी और मिट्टी के आपसी समन्वय पर ही प्रकृति का,पर्यावरण का समुचित प्रबंधन बरकरार है, जिसे विश्व के प्रत्येक व्यक्ति,समाज और राष्ट्र को समझना होगा। प्रकृति के इन संसाधनों के साथ अनावश्यक छेड़छाड़, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से हमें बचना होगा। अब जरूरत इस बात की है कि हमें प्रकृति संरक्षण को सबसे बड़ा धर्म समझना होगा जिसमें हमारे जीवन का मर्म छिपा है, हमारा अस्तित्व छिपा हुआ है, जीवन छिपा हुआ है, यह समझना और अंगीकार करना होगा।

(सह आचार्य, मनोविज्ञान विभाग,
श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज वाराणसी।)।

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