मेरठ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज मेरठ शहर में हैं। वे यहां पर पैरा ओ​लंपिक विजेता खिलाड़ियों का सम्मान करेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री जी क्या शहर की मूलभूत समस्याओं को भी कभी खत्म करेंगे। मेरठ महानगरवासियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुजारिश की है कि वे इन मूलभूत समस्याओं से निजात दिलाए।

शहर खेल, शिक्षा और मेडिकल के क्षेत्र में अलग मुकाम रखता है। लेकिन जब नागरिक सुविधाओं और एक मुकम्मल शहर की बात होती है तो मेरठ पड़ोसी जिलों से भी पीछे छूट जाता है। खुले नाले, सड़क किनारे कचरे के ढेर, आधा-अधूरा सीवेज नेटवर्क शहर की छवि को धूमिल करते हैं। आवारा कुत्तों और बंदरों के हमलों से लोग परेशान हैं। अब आवारा पशु खुलेआम घूमते हैं और जनता पिंजरे में रहने को मजबूर।गंदगी और अव्यवस्था का आलम ही है कि दीपावली के बाद से लगातार मेरठ में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। मुख्यमंत्री जी आज आप मेरठ में हैं। पश्चिमी उप्र की राजधानी कहे जाने वाले मेरठ के लोगों को उम्मीद है कि आप इन समस्याओं से निजात दिलाएंगे, बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराएंगे।

सीवेज नेटवर्क

शहर के 55 प्रतिशत हिस्से में सीवर लाइन नहीं पड़ी है। घरों से निकला सीवेज खुले नाले-नालियों में बहकर सीधे काली नदी में पहुंच रहा है। जल निगम ने प्रस्ताव भेज रखा है। शासन स्तर से शत-प्रतिशत सीवेज नेटवर्क बनाने के लिए निर्णय लेने की जरूरत है। साथ ही 220 एमएलडी एसटीपी की टेंडर प्रक्रिया में तेजी लाकर तय अवधि में कराने की जरूरत है। हालात इतने बुरे हैं कि बड़ी-बड़ी कालोनियों में सीवर लाइन ही नहीं पड़ी हैं। जहां डल भी गई हैं, उन्हें एसटीपी से जोड़ा तक नहीं गया है, लिहाजा गैर शोधित सीवेज खुले नालों में बहता है। एक महानगर की यह बदसूरत तस्वीर नगरीय व्यवस्था को आज भी मुंह चिढ़ाती है।

खुले नाले

शहर में 315 छोटे-बड़े खुले नाले हैं। इनमें ओडियन, आबूनाला-एक और दो समेत 14 खुले नाले जानलेवा हैं। शहर की आबादी के बीच से गुजरते हैं। इनमें गिरकर कई मासूमों की मौत हो चुकी है। नगर निगम दो बार नालों को ढकने का प्रस्ताव भेज चुका है। लेकिन शासन स्तर से निर्णय न हो पाने के कारण ये काम शुरू नहीं हो सका है।

आवारा कुत्ते व बंदरों का डर

शहर में एनिमल बर्थ कंट्रोल कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। इससे आवारा कुत्तों की आबादी में बेतहाशा वृद्धि हो गई है। वहीं, बंदरों की संख्या भी शहर में बढ़ गई है। आवारा कुत्तों की नसबंदी व एंटी रैबीज वैक्सीनेशन का अभियान चलाने के लिए शासन स्तर से सख्त कदम उठाने की जरूरत है। बंदरों को पकड़वा कर वन क्षेत्र में छोडऩे के लिए वन विभाग की अनुमति मिलने में तमाम अड़चनें आती हैं। इसका समाधान भी शासन स्तर से किया जाना जरूरी है। आवारा कुत्तों की समस्या से निदान को नगर निगम द्वारा उठाए गए कदम से अब आम शहरी भी नाउम्मीद हो चुका है। नसबंदी के लिए ओटी निर्माण के लिए लगभग तीन माह पहले टेंडर छोडऩे की प्रक्रिया शुरू की गई थी, उसकी स्थिति क्या है कोई नहीं जानता। ओटी बनने तक नगर निगम इस काम के लिए कैंट बोर्ड या सेना के आरवीसी की मदद भी ले सकता है, लेकिन कोई पहल तक नहीं की गई। अगर सरकार जनता की समस्याओं का निदान करना चाहती है, तो इस दिशा में तेजी से कदम उठाने होंगे। कांजी हाउस का मुद्दा छेडऩा भी अब बेमानी-सा लगता है।

जल निकासी

शहर की बड़ी समस्या है। छोटे-बड़े नालों की संख्या भले ही 315 है, लेकिन जलनिकासी मुकम्मल नहीं है। बागपत रोड से जुड़े निचले इलाकों में जलनिकासी के छोटे नाले-नालियों की कमी है। बड़े नालों की सफाई कभी पूरी नहीं हो पाती है। बिन बारिश के ही लिसाड़ी रोड, माधवपुरम समेत कई मोहल्लों में जलभराव की स्थिति रहती है। ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने की पहल शासन स्तर से हो तो स्थिति सुधर सकती है।

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