मेरठ। संस्कार भारती की साहित्यिक स्वामी विवेकानंद इकाई द्वारा काव्य गोष्ठी एवं कार्यशाला का आयोजन केशव भवन में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री विजय प्रेमी ने की, मुख्य अतिथि डॉ. ईश्वर चंद्र गंभीर व हमारे आशीर्वाद प्रदाता डॉ. सुधाकर आशावादी रहे। 

            कार्यक्रम का मुख्य उददेश्य नवोदित रचनाकारों को स्थापित रचनाकारों से कविता लिखने और उसे सुधारने के गुर से अवगत कराना था। कार्यक्रम की शुरूआत अलका गुप्ता की सरस्वती वंदना से किया गया— वर दे वीणावादिनी, वर दें। नीलम मिश्रा ने सुनाया— हमको बहुत याद आती है, तुम्हारी चिट्ठियांं। रचना सिंह वानिया ने सुनाया— मां ने दिया है जीवन, मां ने है हमको पाला, मां का दुलार तू है अमृत से भरा प्याला। मीनाक्षी शंकर ने सुनाया— कभी अर्थ देखती हूं, कभी फर्श देखती हूं। डा.सुदेश यादव दिव्य ने सुनाया— तुम बिन क्या जीवन है, एक बार चले आओ। मिलने का बहुत मन है एक बार चलेक आओ। अरुणा पंवार सुनाया—बहुत सुनी है अमर कहानी पूजा नमाज और अमृतवाणी। कवि आदिल अहमद ने कहा— जब तक पलडा भारी है तब तक जग आभारी है। धर्मपाल आर्य वेदपथिक ने कहा— मिटाने से नीति नहीं है, निशानी हर बात की लिखी जा रही है कहानी। कवि रामअवतार त्यागी ने पढ़ा भूतों ने फरमाया, हिंसा का साया हमसे है बड़ा। पूनम शर्मा ने कहा कोख में मत मारो बेटी को। माला ने सुनाया— हमने दुनिया को बड़े करीब से देखा है। शोभा रतूडी ने सुनाया— जीवन के शब्दकोष में मिला न कोई शब्द ऐसा। कवि संजीव त्यागी ने सुनाया— सुनो देश के गददारों तुम, तुमको सबक सिखायेंगे। कवि सुनील गुजराती ने भी कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन डा.सुदेश यादव दिव्य ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में जानसन मसीह, राजन आदि का सहयोग रहा।

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