पश्चिम में भाजपा का हुक्का-पानी बंद करने को भाकियू बेताब

पांच मंडलों में भाजपा समेत सभी प्रमुख दलों की सभाएं हुईं तेज


अवनीन्द्र कमल

सहारनपुर। खेती-बाड़ी के लिहाज से जरखेज कही जाने वाली पश्चिमी यूपी की धरती इन दिनों सर्दी के नर्म भाप का दुपट्टा भले ही ओढ़ चुकी हो किंतु सियासी सरगर्मियों ने यहां की बेचैनी बढ़ा दी है। वेस्ट यूपी के आगरा-अलीगढ़, मेरठ-मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल के सियासी आसमान को चुनावी घटाओं ने पूरी तरह से घेर लिया है। ऐसे में भाजपा का हुक्का-पानी बंद कर देने को बेताब भाकियू की गर्जना और तेज हो गई है। सपा-रालोद, कांग्रेस और बसपा ने भी राज्य की योगी सरकार के खिलाफ हुंकार भर दी है। ऐसे में राजनीति के पंडित भी गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिए हैं। कुल मिलाकर भाजपा के लिए इस बार पनघट की डगर पथरीली हो गई लगती है।

यह बताने की जरूरत नहीं कि चुनावी लिहाज से पश्चिमी यूपी का रोल बहुत अहम होता है। यहां से जो माहौल बनता है, वह पूरब तक असर डालता है। यही नहीं, वेस्ट के पांचों मंडलों की करीब 120 से भी ज्यादा विधानसभा सीटें किसी भी दल के लिए सरकार गठन में सहायक होती हैं। अगर सन 2014 व 2019 के लोकसभा तथा इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने विरोधियों की नाक में दम कर दिया और उन्हें मुंह की खानी पड़ी। लेकिन, इस बार हालात पहले की तरह नहीं हैं। कृषि कानूनों को लेकर किसानों की नाराजगी, लखीमपुर खीरी की घटना व गन्ना भुगतान तथा महंगाई समेत कई अन्य मुद्दे हैं जिनसे इस बार भाजपा को मुश्किलों से दो-चार होना पड़ रहा है। याद कीजिए पिछली पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत को। इसकी सफलता से भाजपा को कुछ-कुछ होने लगा। यहां लाखों की संख्या में जुटे किसान नेताओं ने खुलकर भाजपा की मुखालफत की। ऐसे में भाजपा के दिग्गजों को भावी विधानसभा चुनाव में नुकसान का डर सताने लगा है। भाजपा के प्रति जाटों और अन्य बिरादरी के किसानों की नाराजगी को विरोधी दल भुनाना चाहते हैं। कृषि कानूनों के मुद्दे पर रालोद का भाकियू को समर्थन पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए घातक साबित हो सकता है। खुद जयंती चौधरी इन दिनों पूरे रौ में हैं। जयंत की सभाओं में उमड़ती भीड़ यह बताने के लिए काफी है कि उनके साथ सहानुभूति की लहर भी है। सियासी पंडितों का कहना है कि सपा और रालोद में एका हो सकती है। साथ ही कांग्रेस से भी रालोद की नजदीकियां अब छिपी नहीं हैं। ऐसे में वेस्ट में भाजपा की दाल गलना आसान नहीं है। फिलवक्त तो यही है कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ खुद पश्चिम के दौरे पर हैं। गुरुवार को मेरठ में पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने इसके पहले कैराना और उसी रोज रामपुर का दौरा किया। इसके पहले भी उन्होंने पश्चिम के कई जिलों में सभाएं कीं। पिछले दिनों सपा मुखिया अखिलेश यादव भी सहारनपुर आए। अब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी भी पश्चिम की नब्ज टटोल रही हैं। बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्र दो माह पहले ही पश्चिम में जगह-जगह ब्राह्मण सम्मेलन के बहाने बुद्धिजीवियों से रायशुमारी कर गए हैं। फिलहाल, सियासी पारा दिनोंदिन चढ़-उतर रहा है।

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