मेरठ। जलवायु परिवर्तन ओर बढ़ती जनसंख्या देश ही नहीं विश्व के लिए भी आने वाले समय में कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आने वाली है। यह बातेंं भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम, मेरठ द्वारा आजादी के अमृत महोत्स्व थीम के तहत जलवायु परिवर्तन और संसाधन संरक्षण के लिए वैकल्पिक फसल प्रणालियां विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार कांफ्रेंस (वर्चुअल) के दौरान देश विदेश के जुड़े वैज्ञानिकों ने कहीं। वैज्ञानिकों ने इस बात पर चिंता जताई कि इसको लेकर कोई भी देश की सरकारें गंभीर नहीं हैं। जबकि यह आने वाले समय की सबसे बड़ी समस्या है। तीन दिन चली इस सेमिनार का उद्घाटन डॉ. पीयूष पुनिया, विभागाध्यक्ष, कृषि प्रणाली विभाग ने अतिथियों के स्वागत संबोधन से किया।
इसके पश्चात विश्व खाद्य पुरुस्कार 2020 के विजेता एवं पद्मश्री डॉ. रतनलाल, प्रोफेसर, ओहिओ विश्वविद्यालय, अमेरिका ने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण तथा वैश्विक मुद्दों के समाधान हेतु वैकल्पिक खाद्य फसल प्रणालिया विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान में देश की बढ़ती जनसँख्या एवं तकनिकी कुप्रबंधन को प्राकृतिक संसाधनों के क्षीण होने के लिए प्रमुख कारण बताया। उन्होंने बदलते जलवायु परिवेश में देश के कृषि उत्पादन को बढ़ाने हेतु प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर जोर दिया। कांफ्रेंस के दूसरे दिन डॉ0 हिमांशु पाठक, निदेशक, राष्ट्रीय अजैविकतना व प्रबंधन संस्थान, बारामती, महाराष्ट्र, डॉ. एसएन सुधाकर बाबू, भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद एवं डॉ. टी.के. श्रीवास्तव, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने क्रमशः वैकल्पिक फसल प्रणालियों के साथ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ाना, तिलहन आधारित फसल प्रणालियाँ एवं गन्ना आधारित फसल प्रणालियों पर अपने विचार रखे। डॉ. एमएल जाट गेंहू एवं मक्का अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्था, मैक्सिको ने देश में पराली के जलाने से फैलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए संरक्षण खेती के महत्त्व एवं देश में कृषि अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सीमांत एवं छोटे किसानों की भूमि का पर जोर दिया।
 
डॉ. एंथोनीव्हीट ब्रेड, अर्ध-शुष्क उष्ण कटिबंध में अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, तंजानिया ने भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्र में जलवायु जोखिम प्रबंधन पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत की बढ़ती आबादी की खाद्यपूर्ति के लिए अर्ध-शुष्क क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं। कार्यक्रम का समापन डॉ. प्रकाश चंद घासल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में डॉ. लक्ष्मणराम मीणा एवं डॉ. नटराजा सुभाष कार्यक्रम समन्वयक तथा डॉ. अमृतलाल मीणा, डॉ. निर्मल, डॉ. जयराम चौधरी, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. ललित कुमार एवं डॉ. राघवेंद्र आदि का सहयोग रहा।

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