Dr.Raj kumar 
Meerut - लगातार बढ़ रहे मोटर गाडिय़ों के धुएं तथा औद्योगिक इकाइयों से निकलते धुएं के कारण आज शहरी वातावरण काफी प्रदूषित हो गया है। बढ़ते प्रदूषण के कारण शहरी लोगों का जीवन काफी दुखमय हो गया है। महानगरों में रहने वाले काफी लोग श्वास रोगों का शिकार हो गए हैं। दमा श्वास रोग का ही विकृत रूप है।
अभी तक दमा को लाइलाज रोग माना जाता था। इसीलिए दमा को लेकर यह कहावत प्रसिद्ध है दमा दम के साथ जाता है लेकिन यह सही नहीं है। यदि समय पर श्वास रोग का उपचार करा लिया जाए तो दमा से ग्रसित होने की संभावना खत्म हो जाती है।
आज एलोपेैथिक चिकित्सा पद्धति में दमा के उपचार के लिए कोई कारगर औषधि उपलब्ध नहीं है लेकिन आयुर्वेद में इस रोग के उपचार के लिए अनेकों औषधियां उपलब्ध हैं। अगर इनका सेवन सुयोग्य वैद्य की देखरेख में किया जाए तो श्वास रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।
अस्थमा या दमा रोग फेफड़ों के अन्दर नलियों में कफ बलगम भर जाने के कारण उत्पन्न होता है। बलगम से नलियों के भर जाने के कारण रक्त के साफ करने के लिए शरीर को पर्याप्त मात्र में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। आक्सीजन की मात्रा कम पड़ जाने पर उसकी मात्रा पूरी करने केे लिए रोगी को गहरे सांस लेने पड़ते हैं। इसी स्थिति को दमा कहा जाता है। दमा से बचने के लिए जरूरी है कि फेफड़ों की नलियों में कफ न जमे तथा नालियां संकुचित न होंवें।
ग्रीष्म ऋतु के अंतिम दिनों में व शरद ऋतु के प्रारंभिक दिनों में गर्म कपड़े पहनने चाहिएं। ठंडी चीजें कम खानी चाहिएं। सूर्यास्त होने के बाद आइसक्रीम जैसी चीजों के सेवन से बचना चाहिए। संतुलित आहार लेना चाहिए।
 इस ऋतु में भिंडी, अरबी, उड़द, राजमा और छोले का सेवन नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए। असमय भोजन, नहीं करना चाहिए।
रात में सोते समय भाप अवश्य लेनी चाहिए। इससे प्रदूषण के कारण नाक, छाती व गले में जमा कफ दूर हो जाता है। इससे श्वास नली साफ हो जाती है। नीचे कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे दिये जा रहे हैं जिनका सेवन करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है:-
- सर्दी-जुकाम से बचने के लिए एक कप पानी में तुलसी के पांच पत्ते, पांच दाने काली मिर्च के उबालकर चाय बना सेवन करना चाहिए। इस चाय में अदरक बिलकुल नहीं डालना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में अदरक का सेवन हानिकारक होता है। अदरक के सेवन करने से त्वचा रोग, खुजली व एक्जिमा हो सकता है।
- खाने के बाद थोड़ा गुड़ अवश्य खाना चाहिए। इससे छाती के रोग नहीं होते तथा शरीर के सभी विकार मल के साथ शरीर से निकल जाते हैं।
- वासारिष्ट या वासासव 2 चम्मच दुगुने पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करना लाभप्रद हो सकता है।
- वसावलेह दिन में तीन बार सुबह-दोपहर और शाम आधा-आधा चम्मच गर्म पानी या दूध से लेना लाभदायक होता है।
- सोंठ, पीपल और कालीमिर्च सम भाग लेकर दुगुने गुड़ में घोटकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर रख लें। सुबह-शाम 2-2 गोली लें।

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