जाट और मुस्लिमों में बढ़ीं नजदीकियां, अन्य बिरादरी के लोग भी आ रहे साथ

सरकार के प्रति गुस्सा बरकरार, गन्ना भुगतान भी बन रहा  बड़ा मुद्दा

अवनीन्द्र कमल


सहारनपुर
। पिछली 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले अन्नदाताओं की जो महापंचायत हुई, वह बताने के लिए काफी थी कि किसान भाजपा सरकार की नीतियों से खुन्नस खा चुका है। अगर पश्चिमी उप्र के किसानों के संदर्भ में देखें तो इस गन्ना बेल्ट में भाजपा सरकार को लेकर कदम-कदम पर कड़वाहट है। कृषि कानूनों को छोड़ भी दें तो पिछले तीन साल से गन्ना मूल्य एक पाई भी नहीं बढ़ा। अलबत्ता योगी आदित्यनाथ की सरकार ने नलकूपों पर बिजली बहुत महंगी कर दी। चीनी मिलों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग सका है। किसान सम्मान निधि में धांधली और फसल बीमा का लाभ ठीक से न मिलने जैसी कई और वजहें हैं जिससे खीज कर किसान आंदोलित हैं। दिलचस्प ये है कि किसान आंदोलन के बहाने जाट और मुस्लिमों में रिश्ते खिलने लगे हैं। खेती किसानी से जुड़े पश्चिम के गुर्जर, त्यागी, सैनी और कश्यप जैसी बिरादरी के लोग भी संयुक्त मोर्चा की महापंचायत में शरीक हुए। अगर इन जाति समूहों के रिश्ते चुनाव के दरम्यान आपस में खिल उठते हैं तो भाजपा का कमल मुरझाते देर नहीं लगेगी। 

 विधान सभा का चुनाव हो अथवा लोकसभा का, पश्चिमी यूपी काफी महत्वपूर्ण भूमिका में होता है। कहते हैं कि पश्चिम से जो बयार चलती है वह पूरब को भी झकझोर देती है। ऐसे में सन 2022 में उप्र में होने वाले विधान सभा चुनाव में पश्चिमी यूपी का रुख बड़े काम का होगा। थोड़ा पीछे मुड़कर सन 2017 के विधान सभा चुनाव पर नजर डालें तो पाएंगे कि इस दफा वेस्ट की 136 विधान सभा सीटों में भाजपा ने 102 पर फतह कर ली थी। उसकी एक खास वजह ये थी कि जाटों-गुर्जरों के अलावा भाजपा ने सैनी, कश्यप, त्यागी जैसी बिरादरी को साध और बांध लिया था। इनका थोक वोट पाकर भगवा दल की बल्ले-बल्ले हो गई थी। लेकिन, आने वाले विधान सभा चुनावों में इतिहास अपने को फिर दोहराएगा, इसमें संशय है। दरअसल, कृषि कानूनों को लेकर वेस्ट के किसान नाराज हैं। इसकी बानगी मुजफ्फरनगर की महापंचायत में दिखाई पड़ गई। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख घटक भाकियू से जुड़े किसानों का जत्था महापंचायत में यह बताने के लिए काफी था कि सरकार के प्रति उनमें गुस्सा है। दरअसल, कृषि कानूनों के अलावा पश्चिम के किसान तीन साल से गन्ना मूल्य न बढ़ाए जाने से भी खासे नाराज हैं। सन 2017 में  दस हार्स पावर का नलकूप चलाने पर 900 रुपये महीने का बिजली बिल अदा करना होता था, अब किसान हितैषी होने  का दावा करने वाली योगी सरकार ने इसे बढ़ाकर 1,850 कर दिया है। किसानों में भूमि मुआवजे पर भी असंतोष है। किसान सम्मान निधि में धांधली, फसल बीमा योजना को लेकर भी गुस्सा है। महापंचायत में इन मुद्दों को उठाया गया और साथ  ही हिंदू-मुस्लिम एकता के राग भी छेड़े गए। खुद भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्त राकेश टिकैत ने मंच से अल्ला हू अकबर कहते हुए नफरत को दूर भगाने का आह्वान किया। दिलचस्प ये है कि पश्चिम में जाटों-मुस्लिमों के अलावा खेतीबाड़ी से गुर्जरों, सैनी, कश्यप जैसी जातियों का वास्ता है। सरकार की नीतियों से ये जातियां सीधे तौर पर प्रभावित हुई हैं। ऐसे में अगर  भाजपा के खिलाफ ये सभी लामबंद होंगे तो सन 2022 में भाजपा की सीटों में काफी गिरावट आ सकती है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा के सहोदर संगठन ही यह प्रचारित कर रहे हैं कि सन 2022 में फिर योगी सरकार आएगी और भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन, ऐसा है नहीं। लोकतंत्र में जनता जनार्दन है। यहां तो अन्नदाता ही रिसियाया हुआ है तो मतलब साफ है कि सफाया भी हो सकता है। वैसे भी पिछले 25 सालों से उप्र की जनता ने किसी भी सत्तारूढ़ दल को लगातार दूसरी बार सिंघासन पर नहीं बैठने दिया है।

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