नमन तुम्हारे निश्छल प्रेम को..
नमन तुम्हारे अटूट विश्वास को..
नमन तुम्हारे सम्मान भाव को...
अपने संदेह रहित समर्पण से,
हमारे प्रयासों को सफल बनाते हो।
अपने पूर्ण निष्ठा भाव से,
कर्त्तव्य और अंतःविश्वास जगाते हो।
ओढ़कर अभावों का मरुस्थल,
सदा मुस्कान की बूँदे बिखराते हो।
हम तुम्हें देते ज्ञानज्योति,
तुम लगन से सूर्य बन जाते हो।
प्रेम व स्नेह से होकर सिंचित,
पौधे से विशाल वृक्ष बन जाते हो।
देकर देवतुल्य सम्मान,
गुरु को देव श्रेणी में लाते हो।
बनकर एक आदर्श नागरिक,
पद की हमारे गरिमा बढ़ाते हो।
छूकर सफलता के शिखर,
नाम हमारा अमर कर जाते हो।
बनकर अर्जुन और एकलव्य,
द्रोण सा हमें गर्व कराते हो।
खरा उतर जीवन कसौटी पर,
हमें शिक्षक होने की अनुभूति कराते हो।
------------
दीप्ति खुराना
शिक्षिका, मुरादाबाद (यूपी)।



No comments:
Post a Comment