नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ट्रस्ट को फर्जी तरीके से पचास लाख रुपये देने के मामले में भाजपा सांसद मेनका गांधी के खिलाफ आरोपों पर ट्रायल कोर्ट की ओर से बिना अनुमति के संज्ञान लेने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई को नोटिस जारी किया है। जस्टिस योगेश खन्ना की बेंच ने छह दिसम्बर को अगली सुनवाई करने का आदेश दिया है।

इस मामले के शिकायतकर्ता वीएम सिंह ने 04 फरवरी 2020 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। ट्रायल कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि आरोपों पर संज्ञान लेने के लिए वो जरूरी अनुमति हासिल करें। याचिका में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट प्रथम दृष्टया आरोपों से सहमत था लेकिन भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा-19 में संशोधन के बाद अब आरोपों पर संज्ञान लेने के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
इसके पहले मेनका गांधी ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई को आगे जांच करने का आदेश देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। पटियाला हाउस कोर्ट ने 4 फरवरी 2020 को सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और सीबीआई को आगे की जांच करने का आदेश दिया था। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि जो दस्तावेज मौजूद है उससे साजिश का पता चलता है।

दरअसल 2006 में सीबीआई ने मेनका गांधी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें उनके अलावा दो और आरोपितों को आरोपित बनाया गया था। आरोप है कि मेनका गांधी ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन के पूर्व सचिव डॉ. एफयू सिद्दीकी के साथ पीलीभीत में साजिशन गांधीरूरल वेलफेयर ट्रस्ट के पूर्व मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. विजय शर्मा को पचास लाख रुपये स्वीकृत किए थे। सीबीआई ने ये भी आरोप लगाया था कि ट्रस्ट को पीलीभीत के तत्कालीन कलेक्टर ने दो एंबुलेंस खरीदने के लिए करीब ग्यारह लाख रुपये दिए जो मेनका गांधी के सांसद निधि से दिए गए थे। ये पैसे ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी रामाकांत रामपाल को दिए गए जिन्होंने दो जीप खरीदे। उन जीपों को रामपाल सीएमओ से सत्यापित भी नहीं करा पाए क्योंकि जिस मॉडल के लिए पैसे जारी किए गए थे उससे काफी छोटे मॉडल की गाड़ियां खरीदी गई थीं। एफआईआर में ये भी कहा गया था कि उन गाड़ियों का मैनेजिंग ट्रस्टी व्यक्तिगत इस्तेमाल करते थे।

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