बीजेपी के लिए सरदर्दी बने तीन राज्य  


 नयी दिल्ली
। सालों में देश के अधिकांश राज्यों में अपनी व्यापक पहुंच और सत्ता हासिल कहने के बावजूद भाजपा के लिए तीन राज्य सबसे मुश्किल बने हुए हैं। इनमें पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। इन तीनों राज्यों के समीकरण भाजपा के अनुरूप नहीं बैठ पा रहे हैं और उसके केंद्रीय नेतृत्व की भी बड़ी स्वीकार्यता इन राज्यों में नहीं बन पा रही है। इन राज्यों के लिए पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर नई रणनीति बना रही हैए ताकि आने वाले सालों में यहां पर अपनी जड़ें मजबूत की जा सके।

बता  देें भाजपा ने 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अपना व्यापक प्रसार किया है। उसने पूर्वोत्तर के राज्यों से तो कांग्रेस को सत्ता से पूरी तरह बेदखल कर दिया है और अधिकांश राज्यों में वह खुद या उसके सहयोगी सत्ता में है। जम्मू.कश्मीर में उसने अपनी पकड़ मजबूत रखी है। पहले पीडीपी के साथ मिलकर सत्ता हासिल की और अब अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद बने दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में वह लगातार मजबूत भी हो रही है। तेलंगाना में भी पार्टी काफी तेजी से अपनी जड़े जमा रही है। केरल में सत्ता के समीकरण उसके पक्ष में न होने के बावजूद भी वह संगठन के तौर पर अपनी स्थिति कमजोर नहीं होने दे रही है।आंध्र प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं जहां पर उसके केंद्रीय नेतृत्व का जादू नहीं चल पा रहा है। राज्य इकाई भी अन्य दलों की तुलना में काफी पीछे है। द्रविड़ राजनीति के गढ़ तमिलनाडु में भाजपा के कई प्रयोग और कई तरह के बदलाव उसे राज्य की मुख्यधारा की राजनीति में नहीं ला पाए हैं। अभी भी वह किसी न किसी एक प्रमुख द्रविड़ दल के भरोसे ही चल पा रही है। हालांकि पार्टी ने वहां पर नई रणनीति पर काम करना शुरू किया है।

सूत्रों की मानें तों इन तीन राज्यों में भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहां पर उसके केंद्रीय नेतृत्व को लेकर जनता में बहुत ज्यादा उत्साह देखने को नहीं मिला है, जो कि अन्य राज्यों में उसे मिलता रहा है। ऐसे में उसके राज्य नेतृत्व को भी खासी सफलता नहीं मिल पाई है। अब भाजपा नए सिरे से नई रणनीति के तहत यहां पर तैयारी कर रही है, जिसमें संघ की भी अहम भूमिका होगी।


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