डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’


एक बहुत बड़ी बैठक बुलाई गई। बड़ी इसलिए कि बिसलरी की बोतलें औंधी, नेतागण टेढ़े और जमाना उल्टा जो था। बैठक का मुद्दा बैठकी का गद्दा था। इसी गद्दे पर बैठकर नेताई चिंता चिता के समान धूँ-धूँ कर जल रही थी। मुद्दा था- देश ओलंपिक्स में सबसे अधिक पदक कैसे हासिल करें? देश के मुखिया ने कहा, इस बार देश का प्रदर्शन बड़ा शानदार रहा। खिलाड़ियों ने हमारी उम्मीदों से बढ़कर प्रदर्शन किया। फिर भी हम अमेरिका, चीन या फिर जापान की तरह पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पाने से चूक गए। अब आप ही लोग बताएँ कि क्या किया जाए?



बहुत अनुभवी धवलकेशी नेता ने सलाह देते हुए कहा, मैं तो कहता हूँ नए-नए मैदान बनाए जाएँ। खेल विषय को पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर दिया जाए। देखिए फिर कैसे ओलंपिक्स में पदकों की झड़ी लगती है। तभी दूसरे नेता ने उनकी बात काटते हुए कहा, आप तो रहने ही दीजिए। यह ढोंगी बातें कहीं और करना। खुद सरकारी मैदानों की जमीन हड़पकर बैठे हो। उसमें भी अपनी एक ऐसी पाठशाला चलाते हो जहाँ केवल बोतल में पानी भरने की तरह बच्चों को रट्टू तोता बनाने का धंधा चलता है। खेल के नाम पर ठेंगा दिखाने वाले आप खेल के नाम पर अभिशाप हैं।
तीसरे ने दूसरे की बात काटते हुए कहा, चले हैं दूसरों को गुरुज्ञान देने। लगता है आप भूल गए हैं कि आपके खेलमंत्री रहते हुए आपने केवल अपने जात-पात के खिलाड़ियों को आगे बढ़ाया है। उसमें भी आपको वे ही खिलाड़ी सूट करते हैं, जो सूटकेस के साथ आते हैं। चौथे ने तीसरे की बात काटते हुए कहा, अच्छा मियाँ ! जैसे कि खुद को मेजर ध्यानचंद की औलाद समझते हो। तुम्हारी नजर में तो तुम्हारा इलाका ही तुम्हारा देश है, बाकी सब गुड़-गोबर है। यही वजह है कि जितने खिलाड़ी तुम्हारे इलाके से चुने जाते हैं, कहीं और से नहीं चुने जाते। चुने तो चुने एक खिलाड़ी भी पदक नहीं ला पाता। क्या फायदा?
मुखिया ने बीच-बचाव करते हुए सभी को डाँटा। कहा, बैठक के नाम पर केवल कुर्सी तोड़ने आते हैं आप लोग। मैंने उपाय सोच लिया है कि पदकों की संख्या कैसे बढ़ानी है। जैसे तुम लोगों पर हार्स ट्रेडिंग की है, ठीक उसी तरह विदेशी खिलाड़ियों की करते हैं। देखना अगले साल हम ही नंबर वन बनेंगे। पदक मैदान पर नहीं फील्डींग करने से जीते जाते हैं। हम पैसे देकर खिलाड़ियों की फील्डिंग करेंगे। भेडों के झुंड की तरह खरीद-फरोख्त करने का गुर जो हमारे पास है, वह दुनिया में किसी के पास नहीं।      
- (हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार से सम्मानित व्यंग्यकार)

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