ये कथा चंद्रशेखर की है आजाद वीर अलबेले की। गोरों के छक्के छुड़ा दिए उस बबर शेर अलबेले की।। थी पावन भूमि प्रयाग, पार्क अल्फेड जहां वह आया था। वह बैठा ही था वृक्ष छांव, गोरों का दल घिर आया था। वह समझ गया ये धोखा है, छल है, खल है गद्दारी है । अब आजादी की यज्ञ वेदिका में आहुति देने की बारी है।। वह संभला, गरजा सिंहनाद, अंग्रजों को ललकारा था। पिस्तौल कमर से खींच तुरत गोरों को चुन-चुन मारा था ।।
भागी सिपाहियों की टोली, कप्तान साथ में लाया था। सब भागो-भागो कह भागे, सम्मुख न कोई आया था ।। जब एक बची गोली केवल, अपने ही सिर पर मार लिया। आजाद रहे, आजाद मरे, आजाद धरा ने नाम दिया ।। वह वीर बदरका का ही था, उन्नाव जिले में आता है । है कानपुर के पास, क्रांति की वीर धरा कहलाता है । है नमन बदरका बार बार, सौ बार नमन आजाद तुम्हें। असली नायक आजादी के, करते हैं मन से याद तुम्हें ।। - शिवचरण चौहान, कानपुर।
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