घिर-घिर घनघोर घटाएं,
मेरे आंगन में बरस-बरस जाएं।
तन-मन पुलकित हो उठता,
जब-जब याद पिया की आए।

क्या चाहूं, कितना चाहूं ?
यह बात पिया जी तक पहुंचाएं।
रिमझिम-रिमझिम की बरसातें,
ताल-तलैया, कुएं-पोखरे
सबको भरकर जाएं।

रंग-बिरंगे फूल खिले हैं
खुश्बू हैं फैलाएं,
मन्द-मन्द पवन की गति
मुझको है उलझाए।
दिल की धड़कन है बढ़ जाती,
जब रह-रहकर लगता वो आए।

बाहर देखूं, अन्दर झांकू,
मन मेरा घबराए,
आकुल मन से करवट बदलूं,
निंदिया बैरन न आए।
रोटी-रोजी बहुत कठिन है,
सजना से दूर कराए,
चमक-चमक विजली रानी
मुझे मुंह चिढ़ाए।

मेरा भी मन करता है
सजना संग भीगूं,
ये मदिर समा थम जाए।
----------
- अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर।


No comments:

Post a Comment

Popular Posts