दुनिया में 219 प्लांट्स में एंटी वायरल तत्व, रिसर्च की दरकार
By News Prahari -
शोध रिसर्चर्स के लिए मील का पत्थर साबित होगी : कुलपति
आधुनिक चिकित्सा न केवल महंगी है बल्कि इसके दुष्प्रभाव भी हैं। डॉक्टर पांडा बोले, गिलोय, तुलसी, लहसुन, अश्वगंधा आदि सरीखे प्राकृतिक पौधों के असर को लेकर रिसर्च करने का यह सही समय है। आयुष-64, कोरोनिल जैसी मेडिसिन पहले से ही बाजार में हैं। इन दवाइयों को डॉक्टरों की देखरेख में लिया जाना चाहिए। आयुर्वेदिक काढ़े की तरह इन दवाइयों का अति प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि आप ने इन दवाइयों का अधिक प्रयोग कर लिया तो इसके गंभीर और लम्बे समय तक होने वाले दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इन दवाइयों का प्रयोग हल्के से मध्यम संक्रमण के इलाज के लिए किया जाना चाहिए। गंभीर संक्रमण का इलाज अस्पतालों में किया जाना चाहिए। हाईजिया संस्थान के शोध प्रमुख एवं प्रोफेसर डॉ अभिषेक गुप्ता बोले, औषिधीय जड़ी-बूटियों और उनके फाइटोकंपाउंड को कैंसर और वायरल संक्रमण जैसी अन्य बीमारियों के लिए उपयोगी पूरक उपचार के रूप में तेजी से पहचाना जा रहा है। कोरोना वायरस के खिलाफ प्राकृतिक उपचार की तलाश में बड़ी संख्या में उपचार का संग्रह हुआ है, जिन्हे कोविड-19 के इलाज़ के लिए सुझाया जा सकता है। दुनिया भर में लगभग 219 पौधों में एंटीवायरल की तत्व मौजूदगी पाई गई ताकि उन फाइटोकोंस्टीटूएंट्स की पहचान की जा सके, जो कोरोना वायरस संक्रमण में कारगर हो सकती हैं।
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