मेरठ। प्रदेश में आए दिन जहरीली शराब से मौतों का आंकड़ा बढता जा रहा है। योगी सरकार की लाख कोशि​शों के बावजूद भी जहरीली शराब पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है। हैरानी की बात जिस जहरीली शराब की बात की जा रही है। वह जहरीली शराब आबकारी की डिक्शनरी में ही नहीं है। आबकारी विभाग इस जहरीली शराब को अपमिश्रित शराब पीने से हुई मौत मानता है। जबकि हकीकत इसके बिल्कुल अलग है। मजे की बात जहरीली शराब का तैयार पव्वा जिसकी लागत 10 रुपये आती है। लैब जांच में यह जहरीली शराब नहीं बल्कि मिलावटी शराब कही जाती है।   

मुजफ्फरनगर,मेरठ,बिजनौर होते हुए गढ तक का करीब 90 किमी का गंगा किनारे का खादर इलाका जहरीली शराब माफियाओं के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस इलाके में चप्पे—चप्पे पर शराब की भट्टियां सुलगती रहती हैं। इन भट्टियों में जहरीली शराब तैयार की जाती है। खादर के शराब माफियाओं तक पहुंचने के लिए आबकारी विभाग हो या फिर पुलिस विभाग दोनों को ही काफी मेहनत करनी होती है। गंगा के रेत में पुलिस की गाड़ियां चल नहीं पाती इसलिए पुलिस या आबकारी टीम को पैदल ही कई किमी की दूरी तय कर पहुंचाना होता है। लेकिन इतनी जहमत न तो आबकारी विभाग उठाता है और न पुलिस विभाग। दोनों विभागों की सुस्ती के चलते जहरीली शराब के कारोबारी काफी चुस्ती से अपना कारोबार करते रहते हैं।               
ऐसे तैयार होती है जहरीली शराब
सामान्यत: जहरीली शराब दो तरीके से बनाई जाती है। एक देशी तरीके से दूसरा कैमिकल को मिलाकर। लेकिन सेहत के लिए हानिकारक दोनों ही है। इन दोनों शराब की ओवर डोज होते ही व्यक्ति के लिए नरक के द्वार खुल जाते हैं। देशी तरीके से बनाने के लिए गुड़, शीरा से लहन की जरूरत होती है। पश्चिमी उप्र में चीनी मिले अधिक होने और गन्ने की खेती बहुत बड़े इलाके में होने के कारण गुड और शीरा मिलने में कोई परेशानी नहीं होती जबकि लहन की खेती गंगा के किनारे कर ली जाती है। लहन को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है। इसमें एक सप्ताह बाद इसमें यूरिया और बेसरमबेल की पत्ती डाली जाती है। शराब को सड़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाता है। कहीं-कहीं इसमें नौसादर और यूरिया भी मिलाया जाता है। जब लहन सड़ जाती है तो इसको भटठी पर चढा दिया जाता है। गर्म होने पर भॉप उठती हो तो उससे शराब उतारी जाती है। इस शराब में मिला हुआ आक्सीटोसिन ही मौत का कारण बनता है। कच्ची शराब बनाने के लिए पांच किलो गुड़ में 100 ग्राम ईस्ट और यूरिया मिलाकर इसे मिट्टी में गाड़ दिया जाता है। यह लहन उठने पर इसे भट्टी पर चढ़ा दिया जाता है। गर्म होने के बाद जब भाप उठती है, तो उससे शराब उतारी जाती है। इसके अलावा सड़े संतरे, उसके छिलके और सड़े गले अंगूर से भी लहन तैयार किया जाता है। 
कच्ची या जहरीली शराब पीने से ऐसे होती है मौत
डिस्टलरी में शराब में एल्को​हल की जांच करने वाले कैमिस्ट अजय शर्मा बताते हैं कि कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाने की वजह से मिथाइल एल्कोल्हल बन जाता है। इसकी वजह से ही लोगों की मौत हो जाती है। मिथाइल शरीर में जाते ही केमि‍कल रि‍एक्‍शन तेज होता है, इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कुछ लोगों में यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। 
10 रुपये में तैयार होता है मौत का पव्वा
जहरीली या कच्ची शराब का एक पव्वा 10 रुपये में तैयार होता है। यानी मौत के एक पव्वे की कीमत 10 रुपये होती है। शराब तैयार करने के लिए शीरे की लागत 10 प्रति लीटर, आक्सीटोसिन इजेक्शन, इससे करीब 20 लीटर जहरीली शराब तैयार होती हैं। जो 70 रुपये से लेकर 90 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक्री की जाती है। पीने वालों के मुताबिक कच्ची शराब की तुलना में पक्की शराब में पैसा ज़्यादा खर्च करना पड़ता है और उसमें नशा कच्ची के मुकाबले कम होता है। ये शराब ज्यादातर ग्रामीण और मजदूर पीते हैं। कच्ची शराब का एक पैव्वा करीब 25—30 रुपए में मिलता है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts